सहरसा। कोसी क्षेत्र में पानीफल सिघाड़े के उत्पादन की अपार संभावना को देखते सरकार ने वहां इसकी पैदावार को बढ़ावा देने की योजना बनाई। सुपौल जिले के वीरपुर से लेकर सहरसा जिले के कबीरपुर तक कोसी बांध के पूर्वी भाग में लाखों एकड़ जलप्लावित भूमि में बड़े पैमाने पर इसकी खेती किए जाने की रणनीति बनाई गई।
इस फल के पाउडर को देश के विभिन्न राज्यों के अलावा विदेशों तक भेजे जाने की भी नीति बनाई गई। इसके लिए खेती करने वाले किसानों को अनुदान दिया जाना है। कृषि विभाग के निदेशक द्वारा इस संबंध में स्थानीय पदाधिकारियों से रिपोर्ट भी मांगी गई, परंतु इस आजतक कार्यरूप नहीं दिया गया है। चुनावी अभियान में इलाके के जलजमाव वाले क्षेत्र को शोक से वरदान में साबित करने की घोषणा करनेवाले नेताओं को इसकी सुध ही नहीं है।
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जिले के 213 हेक्टेयर में होती है सिघाड़े की खेती
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जानकारी के अनुसार, वर्तमान में जिले के सभी दस प्रखंडों के 213 एकड़ जलप्लावित क्षेत्र में सिघाड़ें की खेती होती है। उत्पादित पानीफल के लिए यहां बाजार भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इस समय कहरा प्रखंड के सुलिन्दाबाद, सिरादेयपट्टी, बलहा पट्टी, चैनपुर, पडऱी और बनगांव पूर्वी पंचायत के 23 हेक्टेयर, सत्तरकटैया प्रखंड के सिहौल, शाहपुर, रकिया, पुरीख, पटोरी पंचगछिया, बिहरा और बारा के 31 हेक्टेयर, नवहट्टा प्रखंड के नवहट्टा पूर्वी, नवहट्टा पश्चिमी, चन्द्रायण, मोहनुपर, मुरादपुर व शाहपुर के 20 हेक्टेयर में पानीफल की पैदावार हो रही है।
इसके अलावा महिषी प्रखंड के राजनपुर सिरवार- वीरवार, तेलहर, नहरवार, महिसरहो, पस्तवार और बघवा के 21 हेक्टेयर, सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड के काठो, खजुरी, खम्हौती, महखड़, मोहनपुर, सरडीहा, सरोजा और सोनपुरा के 30 हेक्टेयर में किसान सिघाड़े की खेती कर रहे हैं। इसी तरह सोनवर्षा प्रखंड के सोनवर्षा, लगमा, खजुराहा, विराटपुर, सोहा, पड़रिया, देहद और मंगवार के 28 हेक्टेयर, सौरबाजार प्रखंड के चंदौर पूर्वी,, चंदौर पश्चिमी, नादो, रौताखेम, सौरबाजार, तीरी और कढ़ैया के 21 हेक्टेयर, पतरघट प्रखंड के विसनपुर, जम्हरा, पस्तपार और पतरघट के 12 हेक्टेयर जलप्लावित क्षेत्रों में भी इसकी खेती जमकर हो रही है।
इसके अलावा प्रमंडल के लगभग सात सौ हेक्टेयर जलप्लावित क्षेत्र में भी इसकी खेती चल रही है। इन सभी क्षेत्रों में नियोजित तरीके से बड़े पैमाने पर पानीफल की खेती कर उसका पाउडर देश-विदेशों के बाजारों में भेजने की योजना बनाई गई। स्थानीय स्तर से संभाव्यता रिपोर्ट भी मांगी गई, परंतु यह योजना संचिकाओं में ही दबी रह गई। इस योजना को कार्यरूप देने से इलाके को काफी लाभ हो सकता था। पूर्व से इसकी खेती में लगे किसानों में काफी उत्साह था। सरकारी उदासीनता के कारण किसानों में आक्रोश गहराने लगा है।
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