मधेपुरा। चुनाव की डुगडुगी बजते ही समाजवाद की धरती मधेपुरा में भी चुनावी शोर गुंजने लगा है। चुनावी शोर के बीच टिकट वितरण से लेकर हार-जीत तक की रणनीति पर चर्चा होने लगी है।
मतदाताओं के रूझान को देखें तो इस इलाके के चारों विधानसभा क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले महिला मतदाताओं का वोट देने के प्रति दिलचस्पी अधिक रही है। 2015 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो महिला मतदाता पुरुषों के मुकाबले में वोट देने में काफी आगे रही हैं। यही स्थिति वर्ष 2019 के हुए लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिली। लोकतंत्र के इस पर्व में महिला मतदाताओं की अधिक हिस्सेदारी रहने की कई वजह राजनीति के जानकार बता रहे हैं।
जानकारों की मानें तो कोसी के इस इलाके में रोजगार का काफी अभाव होने के कारण अधिकांश पुरुष मतदाता रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन कर जाते हैं। इस वजह से यहां अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में महिला मतदाता ही रहती हैं। यही वजह है कि इस क्षेत्र में महिला मतदाताओं का मत प्रतिशत काफी अधिक रहता हैं। दूसरी ओर महिलाओं के शिक्षित होने और राजनीतिक जागृति आने की वजह भी मानी जा रही है। 2015 के विस चुनाव में 10 प्रतिशत से अधिक रहा है अंतर 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में जिले के चारों विधानसभा क्षेत्र में महिला व पुरुष मतदाताओं के मत प्रतिशत पर गौर करें तो यह अंतर 10 प्रतिशत से अधिक का रहा है। चारों विधानसभा क्षेत्र में पुरुष और महिला मतदाताओं को मिलाकर 60.32 प्रतिशत वोट डाले गए थे। मतदान में जहां 55.23 प्रतिशत भागीदारी पुरुष मतदाताओं की रही थी। वहीं महिला मतदाताओं की भागीदारी 65.97 प्रतिशत रही थी। विधानसभा वार गौर करें तो मधेपुरा विधानसभा में जहां 56.48 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने वोट डाले थे। वहीं महिला वोटरों की भागिदारी 64.13 रही थी। सिंहेश्वर विधानसभा क्षेत्र में 52.35 प्रतिशत पुरुषों ने वोट डाले थे। वहीं 65.65 प्रतिशत महिलाओं ने लोकतंत्र के पर्व में हिस्सा लिया था। बिहारीगंज में विस क्षेत्र में जहां 54.82 प्रतिशत पुरुषों ने वोट डाले थे। वहीं 68.32 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इसी तरह आलमनगर विस क्षेत्र के 57.27 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान में हिस्सा लिया था। वहीं 65.79 प्रतिशत महिला वोटरों की हिस्सेदारी रही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कमोवेश यही स्थिति देखने को मिली।
पुरुषों का कम प्रतिशत के पीछे पलायन है बड़ी वजह
समाजवाद का गढ़ माने जाने वाले मधेपुरा जिले में रोजगार की कमी एक बड़ी वजह रही है। यही वजह है कि यहां के ग्रामीण इलाकों से बड़े पैमाने पर रोजगार को लेकर पुरुषों का पलायन होना आम बात है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि पुरुषों का कम मत प्रतिशत होना कोई नहीं बात नहीं है। बाढ़ और सुखाड़ का देश झेलने वाले इस इलाके के लोग रोजी-रोजगार को लेकर प्रतिदिन महानगरों की ओर चले जाते हैं। चुनाव के समय रोजगार व स्वरोजगार उपलब्ध कराने का आश्वासन वर्षों से यहां के लोगों को मिलता रहा है, लेकिन ऐसा आज तक संभव नहीं हो सका।
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