बक्सर : जिले के उप विकास आयुक्त के कार्यालय में कार्यरत वरीय लेखा पदाधिकारी के निगरानी के हत्थे चढ़ने से जाते-जाते उप विकास आयुक्त अरविन्द कुमार पर भी दाग लग गया। अब इस मामले में उनकी मिलीभगत है या नहीं या फिर कितनी है यह तो वही जानें परंतु, पकड़े जाने के बाद निगरानी के समक्ष लेखा पदाधिकारी ने जिस तरह से उनका नाम लिया है और उनके कहने पर ही रिश्वत मांगने की बात कही है इससे अधिकारी का दामन भी दागदार हो गया है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
प्रशासन के नाक के नीचे चल रहे इस घूसकांड ने मनरेगा में भ्रष्टाचार की पोल खोलकर रख दी है। सबसे बड़ी बात कि वहां घूसखोरी का खेल इस कदर चल रहा था और वरीय अधिकारियों को इसकी भनक भी नहीं लगी। जो भी हो, मनरेगा में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं इसे इस घूसकांड ने डंके की चोट पर साबित कर दिया है। बताया जाता है कि मनरेगा में भ्रष्टाचार का यह मामला किसी एक या दो पंचायत का नहीं है अपितु अमूमन सभी पंचायतों में इसके अंतर्गत जो काम हुए हैं उसमें भ्रष्टाचार की गंगा बही है। पिछले दिनों दैनिक जागरण ने भ्रष्टाचार के इन मामलों पर अभियान भी चलाया था। बहरहाल, प्रशासन को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
..तब पीआरएस ने लगाया था पैसा नहीं देने पर बर्खास्त करने का आरोप
मनरेगा में भ्रष्टाचार की कहानी नई नहीं है बल्कि, मनरेगा से भ्रष्टाचार का नाता काफी पुराना है। भ्रष्टाचार के ऐसे ही एक मामले में पीआरएस शीला देवी ने मीडिया को पैसा नहीं देने पर उसे बर्खास्त कर देने का आरोप लगाया था। उसका कहना था कि वर्ष 2014 में जब वह चौसा प्रखंड की डेहरी पंचायत में बतौर पंचायत रोजगार सेवक काम कर रही थी उस वक्त कई योजनाओं में भ्रष्टाचार की बातें सामने आई थी। तब एक योजना में छह लोगों को आरोपी बनाया गया था। जिसमें कार्यपालक अभियंता, पीओ, जेई, तकनीकी सहायक, लेखापाल एवं पीआरएस शामिल थे। लेकिन जांच के दौरान आश्चर्यजनक रूप से पीआरएस को छोड़कर शेष सभी को क्लीन चिट दे दी गई और उनसे उस वक्त नौकरी बचाने के नाम पर पैसों की मांग की गई।
Posted By: Jagran
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