कहानी: योग्यता का सम्मान

14 जुलाई। प्राचीन समय की बात है। उस समय मगध पर रिपुदमन नामक राजा राज्य करता था। वह अपने मंत्रियों को पूरा सम्मान देता था तथा उनकी प्रत्येक राय पर गंभीरतापूर्वक विचार किए बिना कोई निर्णय नहीं लेता था।

जब रिपुदमन बूढ़ा होने लगा तो उसने अपने वरिष्ठ एवं विश्वासपात्र मंत्रियों की सलाह लेने के पश्चात उसने ज्येष्ठ पुत्र शौर्यवीर को गद्दी पर बिठा दिया। शौर्यवीर के दरबार में अखिलेष्वर शर्मा उसके पिता के समय से ही महामंत्री के पद पर नियुक्त था।
रिपुदमन ने शौर्यवीर से कह रखा था कि वह कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय महामंत्री अखिलेष्वर शर्मा की राय अवश्य ले।
राज्य के अन्य मंत्री अखिलेष्वर शर्मा से ईर्ष्या करते थे। वे अखिलेष्वर शर्मा को महामंत्री के पद पर देखकर राजी नहीं थे तथा उन्हें पद से हटाने की तुच्छ रणनीति बनाने में लगे रहते थे। उन्होंने राजा को सलाह दी कि वह महामंत्री अखिलेष्वर शर्मा को पद से मुक्त कर दें क्योंकि वे अब बूढ़े हो गए हैं और उनकी बुद्धि अब क्षीण हो गई है। राज्य के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में वे अब सक्षम नहीं हैं।
युवा राजा शौर्यवीर मंत्रियों की चाल में आ गए। उन्होंने अखिलेष्वर शर्मा को उनके पद से हटाकर विष्णुधर को उनके स्थान पर महामंत्री बना दिया। विष्णुधर अखिलेष्वर शर्मा के समान योग्य नहीं था।
बात महाराज के पिता रिपुदमन के पास पहुंची। उन्हें एक युक्ति सूझी। उन्होंने नए महामंत्री को बुलाया और कहा कि शाही बाग में एक कुतिया ने बच्चों को जन्म दिया है, तुम जाओ और पता करके आओ कि कुतिया ने कितने बच्चों को जन्म दिया है। विष्णुधर घोड़े पर सवार होकर शाही बाग में पहुंचा और अपना काम करके वापस राजमहल लौटा। महाराज के पिता रिपुदमन ने पूछा कि कुतिया ने कितने बच्चों को जन्म दिया है तो उन्होंने बताया कि कुतिया ने चार बच्चों को जन्म दिया है। महाराज ने अगला प्रश्न पूछा कि कितने बच्चे नर और कितने मादा हैं।
महामंत्री को इस बात का उत्तर मालूम नहीं था।
वे दोबारा बाग में पहुंचे तथा इस प्रश्न का उत्तर पता करके रिपुदमन को बताया। रिपुदमन ने तीसरा प्रश्न यह पूछा कि कुतिया के बच्चे किस किस रंग के हैं। महामंत्री विष्णुधर तीसरी बार फिर शाही बाग में पहुंचे। उन्होंने कुतिया के बच्चों का रंग पता कर महाराज के पिता रिपुदमन को बता दिया।
रिपुदमन के इशारा करने पर पूर्व महामंत्री अखिलेष्वर शर्मा राज दरबार में पहुंचे। उन्हें भी शाही बाग में पहुंचकर उस कुतिया का हाल चाल मालूम करने के लिए भेजा गया।
जब अखिलेष्वर शर्मा वापस पहुंचे तो उनसे भी रिपुदमन ने वही प्रश्न पूछे जो विष्णुधर से पूछे थे। अखिलेष्वर शर्मा ने सभी प्रश्नों का उत्तर एक साथ दे दिया।
रिपुदमन ने अपने पुत्र राजा शौर्यवीर की तरफ देखा, राजा अपने पिता का इशारा समझ चुके थे।
उन्होंने अखिलेष्वर शर्मा को पुनः महामंत्री बना दिया तथा विष्णुधर को उनके पुराने पद पर नियुक्त कर दिया। अब राजा शौर्यवीर महामंत्री अखिलेष्वर शर्मा से मंत्रणा करना कभी नहीं भूलते थे।

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