कोरोना से जंग जीतकर जो लोग घर लौट रहे हैं, क्या वे लोग वास्तव में पूरी तरह से स्वस्थ हैं? क्या वे तत्काल अपने सामान्य ज़िंदगी में लौट आते हैं.
इसे लेकर पहला वैज्ञानिक अध्ययन सामने आया है. जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित यह शोध इटली के कोरोना मरीजों पर किया गया है, लेकिन हिंदुस्तान के संदर्भ में भी इसकी सम्मान है.रोम की यूनिवर्सिटी ऑफ अगोस्तीनो के शोधकर्ताओं ने कोरोना के 143 अच्छा हुए मरीजों पर दो महीने के बाद यह अध्ययन किया. ये मरीज दो हफ्ते अस्पताल में वेंटीलेटर पर भर्ती रहे थे. शोध के अनुसार कोरोना संक्रमण के दो महीने के बाद इनमें से 87 प्रतिशत मरीजों ने माना कि उन्हें अभी भी कई किस्म की दिक्कतें हो रही हैं.
50 प्रतिशत को थकान, 43 प्रतिशत को सांस लेने में तकलीफ, 33 प्रतिशत को जोड़ों में दर्द व 22 प्रतिशत को छाती में दर्द की शिकायत पाई गई. इनमें से 55 प्रतिशत मरीजों में तीन लक्षण पाए गए, जबकि 32 प्रतिशत मरीजों में एक या दो लक्षण दिखे. शोधकर्ताओं ने बोला कि महज 13 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्हें किसी प्रकार की कोई शारीरिक परेशानी नहीं हो रही थी व वह सामान्य रूप से अपनी पुरानी जिंदगी में लौट आए थे. अस्पताल से डिस्चार्ज होते समय सभी मरीजों का कोरोना टेस्ट किया गया था जो नकारात्मक निकला. हालांकि दो महीने के बाद किसी मरीज को दोबारा बुखार नहीं हुआ. लेकिन मरीजों में कई ऐसे लक्षण दिखे जो बीमारी के दौरान होते हैं.
दिव्यांग बना सकता है कोरोना: शोधकर्ताओं ने बोला कि यह अध्ययन छोटा है,लेकिन इस ओर इशारा करता है कि गंभीर रूप से अस्पताल में भर्ती कोरोना रोगियों पर बीमारी का लंबे समय तक प्रभाव रह सकता है. कोरोना बीमारी मरीजों को अस्थाई तौर पर दिव्यांग भी बना सकती है.