मुंबई, 10 जुलाई (आईएएनएस)। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) द्वारा भारत में कॉटन के कैरीओवर स्टॉक का जो अनुमान जारी किया गया है उस पर कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सवाल उठाया है। भारतीय कॉटन उद्योग के अनुसार, यूएसडीए ने कॉटन के कैरीओवर स्टॉक का जो अनुमान लगाया है वह काफी ज्यादा है, जिससे वैश्विक स्तर पर भारतीय कॉटन के दाम पर असर पड़ा है।कॉटन एसोसिएशन ने बताया कि यूएसडीए ने अपनी रिपोर्ट में 31 जुलाई, 2020 को भारत में कैरीओवर स्टॉक 190 लाख गांठ (अमेरिकी गांठ) बताया है, जोकि भारत में 170 किलो के एक गांठ के रूप में 244 लाख गांठ होता है।
उद्योग संगठन ने कहा कि अगर अगस्त और सितंबर के दो महीनों की घरेलू मिलों की खपत निकाल दें तो सीजन के आखिर में 30 सितंबर को कैरीओवर स्टॉक 200 लाख गांठ बचेगा। मगर ऐसा नहीं है, क्योंकि भारतीय कपास निगम (सीसीआई) का अनुमान है कि सीजन के आखिर में 50 लाख गांठ कॉटन देश में बचेगा, जबकि कॉटन एडवायजरी बोर्ड ने 30 सितंबर, 2020 को देश में कॉटन का बकाया स्टॉक 48.41 लाख गांठ होने का अनुमान लगाया है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट अतुल गणत्रा ने यूएसडीए को इसमें सुधार करने के लिए गुरुवार को एक पत्र भी लिखा है। उनका कहना है कि यूएसडीए का अनुमान बहुत अधिक है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक धारणा बन रही है कि भारत में कॉटन का काफी बड़ा भंडार है और इस कारण से खरीदार गुमराह हो रहे हैं जिससे भारतीय कॉटन के दाम पर असर पड़ा है और इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज पर जहां भारतीय कॉटन प्रीमियम पर चल रहा था वहां अब इसमें भारी डिस्काउंट पर कारोबार हो रहा है।
कॉटन एसोसिएशन के अनुसार, बीते साल जहां भारतीय कॉटन का दाम 45000 रुपये प्रति कैंडी था और आयातित कॉटन का भाव 42000 रुपये प्रति कैंडी था, वहीं इस साल भारतीय कॉटन 35000 रुपये प्रति कैंडी चल रहा है, जबकि आयातित कॉटन 42000 रुपये प्रति कैंडी, जिससे भारतीय कॉटन का भाव 7000 रुपये प्रति कैंडी के डिस्काउंट पर आ गया है।
-आईएएनएस