नई दिल्ली। नींद इनसान के लिए बहुत जरुरी है, खासकर बच्चों के लिए 8 से 10 घंटे सोना जरुरी है। नींद के साथ खिलवाड़ करने का अर्थ जीवन के साथ खिलवाड़ करना है। लेकिन रफ्तार भरी जिंदगी के इस दौर में हमारी औसत नींद कम होती जा रही है। इस वजह से तनाव के साथ ही कई अन्य तरह की समस्याएं हमें घेर रही हैं। शहरों में बच्चे से लेकर युवा तक सबको देर रात तक जागने की आदत लग गई है। इसके कारण आपके बच्चों को अस्थमा भी हो सकता है।
हाल ही के एक अध्ययन में पाया गया है कि जो टीनएजर्स देर रात तक जागते हैं और सुबह देर तक सोते हैं, उनमें एलर्जी और अस्थमा होने की आशंका उन लोगों की तुलना में अधिक होती है, जो समय पर सोते और सुबह जल्दी जागते हैं। यह बात यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बर्टा, कनाडा के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में साबित की है। इस रिसर्च को ईआरजे ओपन रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इस रिसर्च को पल्मोनरी मेडीसिन विभाग की डॉक्टर सुभ्रता मोइत्रा के नेत्तृव में किया गया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार अध्ययन के निष्कर्ष नींद के महत्व को और अधिक प्रबल बनाते हैं, विशेष रूप से टीएनएजर्स में। अध्ययन में पश्चिम बंगाल के 13 - 14 वर्ष की आयु के 1,684 टीनएजर्स को शामिल किया गया। इनसे कई प्रश्न पूछे गए, जैसे कि क्या वे सुबह जल्दी उठते हैं, रात को देर से सोते हैं, दिन के किस समय वे थके हुए महसूस करते हैं, वे कब उठना पसंद करते हैं आदि। उनसे यह भी पूछा गया था कि क्या वे सांस लेने में दिक्कत महसूस करते हैं। उनके अस्थमा, एलर्जी जैसे नाक बहना और छींकना आदि के बारे में भी जानकारी इकट्ठी की गई।
इसके बाद रिसर्च में सामने आया कि अस्थमा होने की आशंका उन टीनएजर्स में लगभग तीन गुना अधिक थी, जो देर से सोते थे और सुबह देर से जागते थे। डॉक्टर मोइत्रा के अनुसार रिसर्च के परिणाम बताते हैं कि सोने के समय और टीनएजर्स में अस्थमा और एलर्जी के बीच गहरा संबंध है। उन्होंने कहा निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकते हैं कि देर से सोना अस्थमा का कारण बन रहा है, लेकिन स्लीप हार्मोन मेलाटोनिन अक्सर देर से सोने वालों में ज्यादा बनता है और टीनएजर्स में एलर्जी रिसपोन्स को प्रभावित करता है।