नई दिल्ली : बच्चें के लिए मां का दूध अमृत समान हैं। माँ के दूध में वे सभी न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं जो नवजात शिशु की विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। हालांकि इसमें फैट की मात्रा पूरे दिन में अलग-अलग होती है। मां के दूध में बच्चे के लिए फैट भी बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं के दूध में फैट कंटेंट कैसे बढ़ाया जा सकता है और बच्चों के लिए मां के दूध में फैट होना क्यों जरूरी है?माँ के दूध में फैट भरपूर होता है और इसके साथ-साथ इसमें कॉम्प्लेक्स कार्ब्स, प्रोटीन, ओलिगोसैकेराइड, विटामिन्स और मिनरल भी मौजूद होते हैं जो बच्चे के लिए बहुत जरूरी हैं। इसके अलावा बच्चे के जन्म के कुछ दिन तक माँ के ब्रेस्ट में पीले रंग का फ्लूड उत्पन्न होता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं।
कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडीज होते हैं जो नवजात शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। यह बच्चे के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम को विकसित करने और इसके फंक्शन में मदद करता है। मां के दूध में वे सभी न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं जो पहले कुछ महीनों में एक बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी हैं। हालांकि इसमें फैट की मात्रा पूरे दिन में अलग-अलग होती है। चूंकि आपके बच्चे के लिए फैट भी बहुत जरूरी है इसलिए इस लेख में बताया जा रहा है कि बच्चे के लिए माँ के दूध में फैट कंटेंट कैसे बढ़ाया जा सकता है।
जानने के लिए यह लेख पूरा पढ़ें।माँ के दूध में फैट भरपूर होता है और इसके साथ-साथ इसमें कॉम्प्लेक्स कार्ब्स, प्रोटीन, ओलिगोसैकेराइड, विटामिन्स और मिनरल भी मौजूद होते हैं जो बच्चे के लिए बहुत जरूरी हैं। इसके अलावा बच्चे के जन्म के कुछ दिन तक माँ के ब्रेस्ट में पीले रंग का फ्लूड उत्पन्न होता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडीज होते हैं जो नवजात शिशु के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं। यह बच्चे के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम को विकसित करने और इसके फंक्शन में मदद करता है।
सैचुरेटेड फैट मोनोअनसैचुरेटेड फैट पॉलीअनसैचुरेटेड फैट ओमेगा-3 फैटी एसिड माँ के दूध में फैट को प्रभावित करने के कारकमहिलाओं के खाली ब्रेस्ट में भरे हुए ब्रेस्ट से ज्यादा फैट होता है। इसलिए जब आप बच्चे को दूध पिलाना शुरू करती हैं तो सबसे पहले निकलने वाला दूध थोड़ा पतला व प्रोटीन और पानी से भरपूर होता है पर उसमें फैट की मात्रा कम होती है। हालांकि बाद के दूध में फैट की मात्रा ज्यादा होती है।आप बच्चे को दिन में कितनी बार दूध पिलाती हैं इसके अनुरूप ही मां के दूध में फैट कंटेंट होता है।
यह असंभव लगता है पर ऐसा इसलिए है क्योंकि आप ब्रेस्ट में दूध की आपूर्ति से ज्यादा तेज बच्चे को दूध पिलाती हैं। इससे फीडिंग के दौरान हिंडमिल्क ब्रेस्ट में बना रहता है।दिन का समय माँ के दूध में फैट को प्रभावित करता है और यह हर महिला के लिए भी अलग होता है। कुछ महिलाओं के ब्रेस्ट में सुबह के समय दूध की आपूर्ति होती है और कुछ महिलाओं में दोपहर और शाम को होती है। इसलिए आप अपने अनुभवों को लिखकर रखें ताकि आपको पता लग सके कि बच्चे को दूध पिलाने का सबसे बढ़िया समय कौन सा है।
यद्यपि यह अक्सर माना जाता है कि डाइट में फैट शामिल करने से मां के दूध में फैट कंटेंट की कोई वृद्धि नहीं होती है। वास्तव में इस गलत धारणा का कोई भी आधार नहीं है। यदि आपकी डाइट फैट कंटेंट से भरपूर है तो यह माँ के दूध में शमिल फैट को प्रभावित कर सकता है।फैट से शरीर में मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम का विकास होता है। यहाँ कुछ टिप्स दिए हैं जिनकी मदद से माँ के दूध में फैट कंटेंट को बढ़ाया जा सकता है, आइए जानते हैं;हाल ही में बनी मांएं अक्सर सोचती हैं कि वे अपने नवजात शिशु को दोनों ब्रेस्ट से दूध पिलाएं जो वास्तव में जरूरी नहीं है।
जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है तो इसमें मौजूद फैट कंटेंट एक दूसरे से चिपक कर मिल्क डक्ट्स की दीवार में रह जाते हैं। शुरू में पतला दूध यानी फोरमिल्क निप्पल में पहले पहुंचता है और बाद में फैट-युक्त दूध यानी हिंडमिल्क निप्पल में आता है। यदि आप बच्चे को दूसरे ब्रेस्ट से भी दूध पिलाना शुरू कर देती हैं तो बच्चे का पेट भर सकता है और ऐसे में उसे फैट-युक्त दूध नहीं मिल पाता है। इसका बेस्ट तरीका यह है कि आप अपने बच्चे को एक ब्रेस्ट से तब तक दूध पिलाएं जब तक उसका दूध पूरा खत्म न हो जाए।
इसके बाद बच्चा यदि और भूखा है तो आप उसे दूसरे ब्रेस्ट से दूध पिलाना शुरू करें।ब्रेस्ट की मालिश करने से ब्रेस्ट मिल्क का बहाव बढ़ सकता है। आप अपने ब्रेस्ट में हल्का-हल्का दबाव डालकर भी ऐसा कर सकती हैं। इस दबाव से ब्रेस्ट में मौजूद फैट-युक्त दूध निप्पल की तरफ खिसकता है। यह तरीका तभी फायदेमंद है जब इसे करते समय बच्चा दूध पी रहा हो क्योंकि यह बच्चे तक फैट-युक्त दूध पहुँचाने में मदद करता है।यद्यपि माँ के दूध में प्राकृतिक रूप से प्रोटीन होता है और इसमें फैट कंटेंट को बढ़ाने के लिए आप प्रोटीन-युक्त आहार खा सकती हैं।
अंडे, ड्राईफ्रूट्स, दूध, चिकन, चीज़ और मछली में प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है। यदि आप शाकाहारी हैं तो आप लैक्टेशन स्पेशलिस्ट की मदद से प्रोटीन के सप्लीमेंट्स भी ले सकती हैं।आप बच्चे को जितनी ज्यादा बार दूध पिलाएंगी उतना ज्यादा पीछे का फैट-युक्त दूध शुरूआत में ही निप्पल्स की ओर आ सकता है। लगातार ब्रेस्टफीड कराने से हिंडमिल्क आगे की ओर आता है।ब्रेस्ट पंप का उपयोग करने से ब्रेस्ट मिल्क में फैट की मात्रा बढ़ सकती है। पंप से दूध निकालने से ब्रेस्ट खाली करने में मदद मिलती है।
इस प्रकार से फोरमिल्क बाहर निकल जाता है और आपका बच्चा आराम से हिंडमिल्क पीता है जिससे उसे फैट मिलता है। हालांकि बच्चे के विकास और वृद्धि के लिए फोरमिल्क भी जरूरी है।ऐसा माना जाता है कि माँ के दूध में फैट की मात्रा बढ़ाने के लिए नेचुरल हेल्थ सप्लीमेंट्स भी ले सकते हैं। इसमें सनफ्लॉवर लेसिथिन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है और इसका उपयोग वही महिलाएं करती हैं जिनके डक्ट्स ब्लॉक हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सनफ्लॉवर लेसिथिन ब्रेस्ट मिल्क में मौजूद फैट्स के चिपकने को कम करता है और दूध में इसके प्रवाह को बढ़ाता है। इससे बच्चे को दूध पिलाते समय ब्रेस्ट में पीछे मौजूद दूध आगे की तरफ आता है।