कोसी में बाढ़ से ज्यादा टूटता है आसमानी कहर

सहरसा। कोसी में जहां हर वर्ष बाढ़ से लोगों की जानें जाती हैं, वहीं आंकड़े बताते हैं कि इस इलाके में बाढ़ से भी ज्यादा वज्रपात से लोगों की मौत हो रही है। इस इलाके में बाढ़ के समय पानी में डूबने के साथ-साथ सर्पदंश से भी हर वर्ष कई लोगों की जानें जाती है, परंतु विगत एक दशक में वज्रपात ने इन सभी को पीेछे छोड़ दिया है। विशेषज्ञ इसके लिए तरह- तरह के कारण गिना रहे हैं, परंतु जैसे बाढ़ से आहट से लोग सहम जाते हैं। उसी प्रकार बादल की गर्जन सुनकर लोगों को अप्रिय वारदात का भय भी सताने लगता है। इसकी पूर्व सूचना के इंद्रवजा एप बनने से लोगों को बड़ी उम्मीदें जगी है। दो दिन पूर्व इसी तरह की सूचना को जब जिलाधिकारी ने मोबाइल पर प्रसारित किया तो पूरे जिले में सोशल मीडिया के सहारे जंगल की आग की तरह फैल गई। वज्रपात से लगातार हो रही मौत के कारण इलाके के लोग इस वर्ष बेहद सचेत दिखाई दे रहे हैं।

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हर वर्ष आधा दर्जन से अधिक लोगों की होती है मौत
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कोसी का इलाका सर्वाधिक बाढ़ग्रस्त क्षेत्र है। जिले की लगभग आधी आबादी तटबंध के अंदर और उसके अत्यधिक प्रभाव वाले क्षेत्र में निवास करती है। बाढ़ से प्राय: इलाके के लोग जीवन का हिस्सा बना चुके हैं। इससे बचाव के लिए उनके पास कई तरीके भी हैं, परंतु वज्रपात अब इलाके के लोगों को काफी भयभीत कर रहा है। बारिश शुरू होने और बादल की गर्जना सुनकर लोग ठौर तलाशने लगते हैं। फिर भी खेत- खलिहानों में काम करते मजदूरों व सड़क पर आवागमन करते कई लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं।
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डराने लगा है वज्रपात का आंकड़ा
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पिछले पांच वर्षों के आंकड़ें बताते हैं कि सहरसा जिले में वर्ष 2015 से 2019 तक बाढ़ में डूबने की वजह से 29 लोगों की मौत हुई है वहीं पांच वर्षों में वज्रपात से मरनेवालों की संख्या 39 तक पहुंच गयी है। लगातार हो रही घटनाओं का आकलन करें तो सहरसा जिले के नवहट्टा, सत्तरकटैया, सौर बाजार, सिमरीबख्तियारपुर एवं सोनवर्षा प्रखंड के अंतर्गत ज्यादा घटनाएं हो रही है। इन प्रखंडों का पूर्वी इलाका ज्यादा प्रभावित रहता है। हालांकि वज्रपात से हो रही मौत पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार ने तीन-चार वर्ष पूर्व ही सरकारी भवनों सहित स्कूुलों की छतों पर तड़ित चालक यंत्र लगाने की योजना लगाने का आदेश दिया था। नए बन रहे भवनों में यह प्रावधान किया जा रहा है, परंतु पुराने सरकारी भवनों में आज भी तड़ित चालक यंत्र का अभाव है। एक अप्रैल 2015 से पूर्व तक वज्रपात से मौत पर प्राकृतिक आपदा मद से डेढ़ लाख रुपये का प्रावधान था, जिसे एक अप्रैल 15 के बाद बढ़ाकर चार लाख कर दिया गया। अब सरकार को बाढ़ से ज्यादा इसी मद में सर्वाधिक अनुग्रह अनुदान का भुगतान करना पड़ता है।
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वज्रपात से इस इलाके में मौत की संख्या बढ़ रही है। इसके लिए सरकार भी चितित है। वज्रपात से मरनेवाले सभी लोगों के परिजनों को आपदा मद के प्रावधान के अनुसार अनुग्रह अनुदान का भुगतान किया जा रहा है।
राजेन्द्र दास
आपदा प्रबंधन, पदाधिकारी, सहरसा।
Posted By: Jagran
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