समस्या गंभीर होने पर चिकित्सक ने दी सलाह अस्थमा मरीज इन तरीको से रखे ध्यान

अस्थमा को दमा भी कहते हैं. यह श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है. इसके होने के कई कारण हैं, लेकिन इसमें मुख्य कारण एलर्जी है. पहले यह बीमारी उम्रदराज लोगों में अधिक देखने को मिलती थी लेकिन अब छोटे बच्चों को भी यह बीमारी हो रही है.

अस्थमा का प्रारम्भ में उपचार दवाओं से होता है, लेकिन समस्या गंभीर होने पर चिकित्सक कई बार मरीज को इन्हेलर की सलाह देते हैं, लेकिन बिना डॉक्टरी सलाह पर इसका प्रयोग नुकसानदायक होता है. डॉक्टरी सलाह पर ही लें.
अस्थमा में इन्हेलर अच्छा होता है लेकिन इसके कई सालों तक प्रयोग से स्किन पर बुरे प्रभाव के साथ मोतियाबिंद का भी खतरा रहता है.
लक्षण व जांचें- अचानक खांसी, छींकें या सर्दी लगना, सांस लेने में कठिनाई व सीने में जकडऩ महसूस होना, सांस लेते समय घरघराहट जैसी आवाज, तेज सांस लेने पर पसीना के साथ बेचैनी महसूस होना, सिर भारी-भारी रहना, जल्दी-जल्दी सांस लेने पर थकावट महसूस होना आदि इसके लक्षण हैं. सांस की नली में कितनी सिकुडऩ है इसके लिए स्पाइरोमेट्री टैस्ट कराते हैं. साथ ही सांस लेने की क्षमता के लिए पीक फ्लो टैस्ट होता है.
घरेलू तरीका - आंवला पाउडर व शहद का मिलावट रोज प्रातः काल लें. इससे आराम मिलेगा. सांस लेने में कठिनाई होने पर शहद सूंघना चाहिए. इससे राहत मिलती है. सांस नली खुल जाती है. सरसों ऑयल व कर्पूर को गुनगुना गर्म कर सीने व पीठ पर मालिश करें. इससे कफ कम होता है. 10-15 लहसुन की कली को दूध में उबालकर गुनगुना ही पीएं. गर्म कॉफी या फिर अदरक व अनार के रस को शहद के साथ मिलाकर पीने से भी राहत मिलती है.
दमा के लिए योग - अनुलोम विलोम, कपालभाति, मत्स्यासन, भुजंगासन व शवासन आदि आसन करने से अस्थमा रोगियों को लाभ होता है. इन्हें नियमित करना चाहिए.
मुख्य कारण - धूल व धुएं से यह बीमारी फैलती है. खाने की छौंक, फूलों के परागण, घर के पालतू जानवरों के फर व कॉकरोच से भी इसकी एलर्जी होती है. डर या तनाव व स्त्रियों में हार्मोनल परिवर्तन से भी अस्थमा होने कि सम्भावना है.
ये बातें रखें ध्यान - घर को हमेशा साफ रखें ताकि धूल से एलर्जी की संभावना न रहे. योग-व्यायाम व ध्यान कर खुद को शांत रखने की प्रयास करना चाहिए. मुंह से सांस न लें इससे समस्या व बढ़ सकती है. रोगी गर्म बिस्तर में ही सोए. इससे अस्थमा का अटैक घटता है. धूम्रपान, शराब व ज्यादा मिर्च-मसालेदार चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए. तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगड़े वाले माहौल से दूर रहना चाहिए. इन्हेलर का इस्तेमाल करने वाले मरीज इसको हमेशा अपने पास रखें. काई, धूल मिट्टी वाली जगहों से दूर रहने का कोशिश करना चाहिए. घर के अंदर हैं तो हर प्रकार के धुंए से बचें. शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने के लिए ताजे फल व सब्जियां खूब खाएं. अगर आपका बच्चा अस्थमैटिक है तो उसके दोस्तों और अध्यापक को बता दें ताकि अटैक की स्थिति में उसकी मदद कर सकें. ज्यादा गर्म व ज्यादा नम वातावरण से बचें क्योंकि इससे भी एलर्जी होने की संभावना रहती है. आंधी व तूफान में घर से बाहर न जाएं.
इलाज का उपाय - एलोपैथी अस्थमा से पीड़ित मरीजों के उपचार से पहले कारण जाने की प्रयास की जाती है. एलर्जी का पता चलने के बाद सांस नली की सिकुड़न दूर करने के लिए इन्हेलर व कुछ दवाइयां दी जाती है. अगर सीने में अधिक जकड़न है तो नेबूलाइजर से कफ को घटाया जाता है ताकि मरीज को आराम मिले.
आयुर्वेद- अस्थमा को आयुर्वेद में तमकश्वांस कहते हैं. यह कफ जनित रोग होता है. इसलिए पहले इसमें कुछ दवाइयां देकर वमन कर्म (उल्टी) कराया जाता है ताकि कफ बाहर निकल जाए. इसके बाद मरीज को खाने के लिए दवा दी जाती है. इनमें श्वांसकाथुर रस, श्वांस चिंतामणि, वासदी क्वाथ आदि दिया जाता है.
होम्योपैथी - लक्षणों के आधार पर होम्योपैथी में उपचार होता है. अस्थमा के मरीजों पर भी यही नियम लागू होता है. अगर कफ ज्यादा बन रहा है तो एंटोमोनियम टार्ट दिया जाता है जबकि सांस लेने में कठिनाई होने पर एस्पीडोस्पेरमा क्यू व रात में सांस लेने पर समस्या आ रही है तो आर्सेनिक एल्बम 30 दी जाती है. लेकिन मरीज ये दवाइयां चिकित्सक की सलाह पर ही लें.

अन्य समाचार