त्रेता युग में राम और रावण का युद्ध हुआ था, जहां पर श्री राम ने रावण का वध किया और लंका का अधिपति रावण के भाई को सौंप कर, वापस अपने राज्य लौट आए।
लेकिन आपने गौर से देखा होगा की युद्ध से पहले भी रावण और श्रीराम का आमना-सामना हो चुका था और वह कहां हुआ था, तो जनकपुरी में। जहां पर राजा जनक ने माता सीता के विवाह के लिए स्वयंवर रखा था, जिसमें भगवान शिव के धनुष को उठा कर, उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले वीर पुरुष की माता सीता से शादी होती।
क्योंकि माता सीता ने छोटी सी उम्र में भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था, जिसके बाद महाराज जनक ने मन ही मन यह तय कर लिया था, कि जो वीर पुरुष इस धनुष को उठा कर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से सीता की विवाह होगी।
कैलाश पर्वत को उठाने वाला रावण, आखिर में उस धनुष को क्यों नहीं उठा सका, इसके बारे में गीता में एक श्लोक के माध्यम से बताया गया है। जब भगवान राम के गुरु विश्वामित्र जी ने कहा- जाओ राम धनुष को उठाओ और जनक की पीड़ा दूर करो, इसी में एक शब्द है 'भव चापा' इसका मतलब होता है, इस धनुष को उठाने के लिए, सिर्फ शक्ति ही नहीं बल्कि प्रेम की आवश्यकता चाहिए।