ऐसा कहा जाता है कि अगर आप 1 साल में गुरुवार का व्रत करते हैं तो आपके घर में कभी भी पैसे रुपयों की कमी नही होती आपका पर्स कभी खली नही होता.
गुरुवार की पूजा विधि-विधान के साथ की जानी चाहिए. व्रत के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर वृहस्पति देश की पूजा करनी चाहिए. इस दौरान पीले वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है. पूजा में पीली (Yellow) वस्तुएं, जैसे पीले फूल, चने की दाल, मुनक्का, पीली मिठाई, पीले चावल हल्दी चढ़ाई जाती है.
प्राचीनकाल में एक बहुत ही निर्धन ब्राहमण था. उसके कोई संन्तान न थी. वह नित्य पूजा-पाठ करता, परंतु उसकी स्त्री न स्नान करती न किसी देवता का पूजन करती. इस कारण ब्राहमण देवता बहुत दुखी रहते थे अपनी पत्नी को बहुत समझाते किंतु उसका कोई परिणाम न निकलता. भगवान की कृपा से ब्राहमण के यहां एक कन्या उत्पन्न हुई. कन्या बड़ी होने लगी. प्रातः स्नान करके वह भगवान विष्णु का जाप करती. वृहस्पतिवार का व्रत भी करने लगी. पूजा पाठ समाप्त कर पाठशाला जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती पाठशाला के मार्ग में डालती जाती. लौटते समय वही जौ स्वर्ण के हो जाते तो उनको बीनकर घर ले आती. एक दिन वह बालिका सूप में उन सोने के जौ को फटककर साफ कर रही थी कि तभी उसकी मां ने देख लिया कहा कि हे बेटी सोने के जौ को फटकने के लिये सोने का सूप भी तो होना चाहिये.
इस व्रत में केले के पेड़ की पूजा भी की जाती है. जल में हल्दी डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाया जाता है. इसके बाद चने की दाल मुनक्का पेड़ की जड़ों में डालकर दिया जलाया जाता है औऱ पेड़ की आरती उतारी जाती है. पूजा के बाज बृहस्पति देव की कथा भी सुननी चाहिए. इस दिन दान-पुण्य का भी काफी महत्व होता है.
दूसरे दिन गुरुवार था. कन्या ने व्रत रखा वृहस्पतिदेव से सोने का सूप देने की प्रार्थना की कहा कि हे प्रभु यदि सच्चे मन से मैंने आपकी पूजा की हो तो मुझे सोने का सूप दे दो. वृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली. रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई पाठशाला चली गई. पाठशाला से लौटकर जब वह जौ बीन रही थी तो वृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सोने का सूप मिला. उसे वह घर ले आई उससे जौ साफ करने लगी. परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा.