इस नीति में चाणक्य कहते हैं कि जो मित्र हमारे सामने मीठी बातें करते हैं, हमारी तारीफ करते हैं और पीठ पीछे बुराई करते हैं, काम बिगाड़ने की कोशिश करते हैं, उससे मित्रता नहीं रखनी चाहिए। ऐसे लोगों को तुरंत छोड़ देना चाहिए।
इस प्रकार के मित्र उस घड़े के समान होते हैं जिनके मुख पर तो दूध दिखाई देता है, लेकिन अंदर विष भरा होता है। इनका साथ हमारे लिए नुकसानदायक होता है। इसीलिए ऐसे मित्रों से बचना चाहिए।
चाणक्य नीति में दूसरे अध्याय के छठे श्लोक में लिखा है कि- न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चाऽपि न विश्वसेत्। कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत्।।
इस नीति में चाणक्य कहते हैं कि हमें कुमित्र यानी बुरे लोगों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही ये बात भी ध्यान रखें कि कभी भी सुमित्र यानी जो लोग हमारे मित्र हैं, उन पर भी बहुत ज्यादा भरोसा न करें। भविष्य में कभी उससे लड़ाई हो गई तो वह हमारे सभी राज उजागर कर सकते हैं और हमारी समस्याएं बढ़ सकती हैं।