New tool for detecting diabetic retinopathy
नई दिल्ली, 24 जून (उमाशंकर मिश्र ): भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने श्री (Sri Sankaradeva Nethralaya,) के साथ मिलकर डायबिटिक रेटिनोपैथी का पता लगाने लिए एक नया उपकरण विकसित किया है। यह एक प्वाइंट ऑफ केयर उपकरण है जो बिना चीरफाड़ के शुरुआती चरण में ही इस बीमारी का पता लगाने में मददगार हो सकता है। शोधकर्ताओं ने इससे संबंधित आइडिया और उपकरण के लिए एक भारतीय पेटेंट भी दायर कर दिया है।
वास्तव में, शोधकर्ता एक ऐसा उपकरण विकसित करना चाहते थे, जिसकी मदद रक्त या मूत्र जैसे शारीरिक नमूनों के उपयोग से लक्षणों के उभरने से पहले ही रेटिनोपैथी का पता लगाया जा सके। इसने उन्हें रेटिनोपैथी से संबंधित उपयुक्त बायोमार्करों की तलाश करने के लिए प्रेरित किया।
बायोमार्कर से तात्पर्य यहाँ उन रसायनों से है जो शरीर के तरल पदार्थों में पाए जाते हैं। ऐसे रसायन आसन्न या मौजूदा रेटिनोपैथी का संकेत दे सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि आँसू और मूत्र में पाया जाने वाला एक प्रोटीन बीटा-2-माइक्रोग्लोबुलिन (बी2एम) रेटिनोपैथी का पता लगाने के लिए एक विश्वसनीय संकेतक हो सकता है। इस जानकारी के साथ शोधकर्ताओं ने ऐसा उपकरण विकसित करने का फैसला किया जो शारीरिक तरल पदार्थों के नमूनों में इस प्रोटीन का पता लगा सके।
आईआईटी-गुवाहाटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और सेंटर फॉर नैनोटेक्नोलॉजी के प्रमुख डॉ दीपांकर बंद्योपाध्याय ने बताया कि
'वर्तमान में, डायबिटिक रेटिनोपैथी के परीक्षण में पहला चरण चीरा लगाकर किए जाने वाला आँखों का परीक्षण है, जिसमें आँखों को फैलाकर या खींचकर नेत्र रोग विशेषज्ञ उसका निरीक्षण करते हैं।'
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ बन्धोपाध्याय ने कहा,
'जिन लोगों की आँखों की जाँच हुई है, वे जानते हैं कि यह असुविधाजनक है, परीक्षण के बाद लंबे समय तक उन्हें धुंधली दृष्टि के साथ रहना पड़ता है। ऑप्टिकल कोएरेंस टोमोग्राफी, फ़्लोरेसिन एंजियोग्राफी, रेटिना में एक्सडेट्स का पता लगाना, और इमेज विश्लेषण जैसे आधुनिक तरीके भी काफी जटिल हैं, जिसके लिए कुशल ऑपरेटरों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, रोग का पता जब तक लग पाता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।'
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं की टीम ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जिसमें संवेदी तत्व के रूप में बी2एम के एक एंटीबॉडी का उपयोग किया गया है, जिसे मनुष्य के बालों की चौड़ाई से एक लाख गुणा छोटे सोने के कणों पर स्थिर किया गया है। जब यह नैनो आकार के सोने के कणों से युक्त एंटीबॉडी बी2एम के संपर्क में आती है, तो रंग में बदलाव देखने को मिलता है, जिससे रेटिनोपैथी का पता लगाया जा सकता है।
मानव संसाधन और विकास मंत्रालय, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद एवं इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस सस्टेनेबल केमिस्ट्री ऐंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित किया गया है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी का कारण (Causes of diabetic retinopathy) रेटिना रक्त वाहिकाओं में असामान्य वृद्धि होना है। यह स्थिति आमतौर पर गंभीर हो जाती है जब रोगी मधुमेह के इलाज के लिए इंसुलिन ले रहा होता है।
एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2025 तक 1.1-02 करोड़ भारतीय मधुमेह रेटिनोपैथी से पीड़ित होंगे, जो एक गंभीर गैर-संचारी रोग के रूप में जाना जाता है।
इस अध्ययन में आईआईटी गुवाहाटी के प्रोफेसर बंद्योपाध्याय और उनके छात्रों, सुरजेंदु मैती, सुभ्रदीप घोष, तमन्ना भुइयां और शंकर नेत्रालय गुवाहाटी के शोधकर्ता डॉ दीपांकर दास शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)