पद्मासान- शरीर पर जमी अलावा चर्बी को घटाने, फैट की चर्बी कम करने, जोड़ों में लचक बनाने, आलस्य को दूर करने, कब्ज और पेट संबंधी विकारों में राहत देने आदि में भी लाभकारी.
योग मुद्रा- इसको नियमित करने से फैट की चर्बी दूर होता, मेरूदंड ठीक होता है व पेट से जुड़े सभी रोगों से बचाव होता है. तुलासन- शरीर का बैलेंस ठीक होता है, शरीर में हल्कापन का अनुभव होता है व शरीर लचकदार बनती है. अद्र्धचन्द्रासन- पाचन तंत्र मजबूत होता है, पेट की बीमारियां नहीं होती हैं. मेरुदंड में लचीलापन व कमर दर्द आदि में राहत मिलता है. त्रिकोणासन- इससे पाचन तंत्र अच्छा होता है, यकृत एवं हार्मोन ग्रंथियां की सक्रियता बढ़ती है. सूर्य नमस्कार- इसके 12 मुद्राएं होती हैं. इसका सारे शरीर पर फायदा होता है. शरीर के बाह्य एवं आतंरिक अंग-प्रत्यंग को फायदा होता है. मेरुदंड मजबूत होता है, कमर लचकदार होती, पाचन तंत्र एवं नाड़ी संस्थान मजबूत होता व रक्तचाप ठीक होता है. शवासन-यह पूर्ण विश्राम की स्थिति में किया जाता है. इससे तनाव मुक्ति, मन शांत, आनंद का अनुभव, थकावट दूर, उच्च रक्तचाप व अनिद्रा में आराम मिलता है. नौकासन- मेरूदंड, कंधों, पीठ की समस्या में लाभ, हाथ पैरों में लचक, वजन नियंत्रित रहता है, स्फूर्तिदायक में लाभदायक होता है. पश्चिमोतानासन - हाथ-परों की शक्ति बढ़ती, मेरूदंड लचीला होता, कंधे मजबूत होते, पाचन तंत्र अच्छा होता, भूख बढ़ती, फैट की चर्बी नहीं होता व शरीर में स्फूर्ति बढ़ती, शरीर लचकदार होता है. गौमुखासन- कंधे व घुटने मजबूत होते, स्नायुमण्डल सुदृढ़़, मानसिक संतुलन व मेरूदंड सुदृढ़ होता है वज्रासन- सब आसनों के लिए पेट खाली होना चाहिए. लेकिन इसे खाने के बाद किया जाता है तो पाचन ठीक रहता है. मेरूदंड, कमर एवं कंधों के दर्द दूर होते हैं. मानसिक संतुलन होता व ध्यान होता है. ऊष्टासन - विचारों में स्थिरता आती, मन शांत व नियंत्रित रहता है, छाती की मांसपेशियां सशक्त, मेरुदंड में लचीनालपन, अधिक चर्बी समाप्त होती है व पाचन तंत्र ठीक होने के साथ फेफड़ों की क्रियाशीलता बढ़ती है. शशांकासन - नाड़ी संस्थान मजबूत होता, मनशांत, कोध्र, ईष्या एवं अहंकार का त्याग होता है. मन भटकता नहीं है. भुजंगासन - गर्दन व मेरूदंड सुदृढ़ एवं लचकदार, गुर्दों, यकृत, गर्भाशय, पेट फेफड़ों, थायरॉइड आदि में फायदा पहुंचाता है. पीठ के दर्द दूर, शरीर में लचक व गला रोगों से भी बचाता है. धनुरासन - गुर्दों, पीठ एवं जांघों को मजबूत बनाता है. शरीर को लचकदार, फेफड़े, हदय, यकृत, आंतें, प्लीहा व पेट सभी समस्याओं से बचाता व रोग हो गए हैं तो फायदा देता है. इसको नियमित करने से फैट की चर्बी घटता है. हलासन- नाड़ी संस्थान को मजबूत करता, थायरॉइड ग्रंथि को ठीक रखता, मेरुदंड लचकदार होता, थायरॉइड की समस्या में आराम, वजन नियंत्रित रहता व ब्लड सर्कूलेशन भी ठीक रहता है. मकर आसन - गुर्दों, यकृत एवं आंतों को सशक्त बनाता है. अपच एवं कब्ज दूर, पैरों व पीठ में फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ती, मेरूदंड ठीक रहता, पीठ, घुटनों की समस्या में आराम, स्लिप में लाभदायक, पेट के समस्त रोग दूर, मोटापे में कमी, उच्च रक्?तचाप एवं हदय रोग से मुक्ति व नाड़ी संस्थान अच्छा होता है. पवन मुक्तास- दिल एवं फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती, पैट में गैस व अम्लता से मुक्ति, पेट के समस्त रोगों से बचाव होता, ब्लड फ्लो अच्छा रहता व गर्दन की लचक बढ़ती है. सर्वांगासन-थायरॉइड व प्यूटरिट ग्रंथि सक्रिय होते, थकावटऔर उदासी से मुक्ति, गर्दन, नेत्रों, कानों, फेफड़ों को फायदा मिलता, गर्दन व सिर को पर्याप्त ब्लड मिलता, मस्तिक की क्रियाशीलता में वृद्धि, मानसिक रोगों से बचाव होता व मेरुदंड लचकदार होता है.