शहरनामा ::: लखीसराय :::

यह जॉब कार्ड है या राशन कार्ड

कोरोना का कहर अब भी जारी है। जिनके रोजी-रोजगार चले गए वे अभी अपनी व्यवस्था को पटरी पर लाने की जुगत में लगे हुए हैं। कहीं से उन्हें किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही है। किसी की नौकरी चली गई हो तो किसी का धंधा मंदा हो गए। संस्थान, सरकार और बाजार पर उनकी निगाहें टिकी हुई है। इस परिस्थिति व सरकारी दावे के खोखलेपन के बीच माननीय इन दिनों लोगों के बीच जा रहे हैं। गांव-मोहल्ले में लोगों के हाथों में एक कागज (पत्र) थमा रहे हैं। पीछे से शारीरिक दूरी बनाए रखने की परवाह किए बगैर दर्जन भर निजी लोग जिदाबाद-जिदाबाद के नारे भी लगा रहे हैं। इसी दौरान एक कम पढ़ी लिखी महिला ने पत्र लेकर सवाल कर दिया, यह जॉब कार्ड है या राशन कार्ड। अगले दिन चूल्हा कैसे जले इसकी चिता मुझे लगी है और आपको अभी भी राजनीति ही सूझ रही है।
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ब्लैक में फल बेचता है!
अभी दो-चार दिन पहले ही नगर स्थित थाने के एक दारोगा फल की दुकान पर फल लेने गए। दुकानदार ने जब रेट बताया तो दारोगा जी अपने रंग में आ गए। इतना हाई रेट सुनकर कोई भी गुस्सा जाए। अगर कोई वर्दी वाला हो तो ताव खाएगा ही। बोलने लगे- जानता है, मैं पुलिस में हूं। ब्लैक में फल बेचता है। दारोगा जी ने उसे हवालात तक पहुंचाने की धमकी दे डाली। दुकानदार बोलते रहा, सर यह बात है तो आप ऐसे ही ले लीजिए। अब अभी बाजार कोरोना के कारण टाइट है। फल तो लोकल उपजता नहीं। यह तो बाहर से आता है। अब जो रेट आता है उसी अपना दो पैसा जोड़कर हम दाम लगाते हैं। इसी दौरान एक मीडियाकर्मी के दुकान पर पहुंचते ही दारोगा जी सिद्धांत के पक्के बनकर दुकानदार के हितैषी बन गए। तय रेट के हिसाब से पैसे दिए और फल लेकर चलते बने।
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चिमनी भट्ठे पर मुखिया
जैसे देश में एक प्रधानमंत्री होते हैं, राज्यों में एक मुख्यमंत्री होते हैं, वैसे ही ग्राम पंचायतों में एक मुखिया होते हैं। इनके पास सीधे तौर पर पुलिस नहीं होती पर तमाम योजनाओं के क्रियान्वयन एवं पंचायत के संपूर्ण विकास की जबावदेही उनकी ही होती है। इन दिनों जिले की कई मुखिया पंचायत छोड़ चिमनी भट्ठे पर शासन चला रहे हैं। वहीं अस्थाई पंचायत मुख्यालय बना लिया है। सुबह होते ही उनके कदम चिमनी भट्ठे की ओर चल पड़ते हैं। पंचायत में नल-जल योजना, जन वितरण प्रणाली की दुकान का सही संचालन और राशन कार्ड का निर्माण, कोरोना से बचाव को लेकर जागरुकता कार्यक्रम, मास्क और साबुन का घर-घर वितरण कराने की जिम्मेदारी से दूर उन्हें तो बारिश से पहले ईट का निर्माण तेजी से कराकर उसका भंडारण कर लेने की चिता है। यही कारण है कि पेयजल की गंभीर समस्या के बीच लोग हर घर-नल जल को लालायित हैं।
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आपको कोरोना हो जाए
इस धरती पर कोई किसी का नहीं है। जो भी रिश्ता है वह सिर्फ एक माया है। इसलिए यहां संबंध स्थाई नहीं होते हैं। शास्त्र यही कहता है कि धर्म और भगवान का ही एक रिश्ता है जिससे बंधकर लोग माया के रिश्ते में बंधे होते हैं। राजनीति के रिश्ते भी कुछ ऐसे ही होते हैं जहां कोई किसी का नहीं होता है। कल तक राजनीतिक यात्रा की अगुवाई करने वाले पीछे चले जाते हैं और पीछे चले जाने वाले आगे निकल जाते हैं। पद की लालसा में किसी हद तक जाने को भी राजनीति ही कहते हैं। इन दिनों सोशल साइट्स पर माननीय के लिए कोरोना हो जाने की याचना कल तक उनके बायें-दायें कुर्सी पर बैठने वाले ही कर रहे हैं। साथी कार्यकर्ता द्वारा कोरोना हो जाने के शाप से माननीय भी मानसिक रूप से परेशान दिख रहे हैं, चूंकि आगामी समय में चुनावी दंगल जो सामने है।
Posted By: Jagran
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