फिर बालू देने लगा तेल
दो महीने से हर तरफ लॉकडाउन है। लॉकडाउन का मतलब घरों में रहना है। जरूरी काम से ही निकलना है। इस बीच प्रवासियों के लौटने की संख्या को देखकर सरकार ने निर्माण कार्य शुरू करते हुए रोजगार सृजन करने का आदेश जारी किया ताकि लोगों को काम मिल सके। आर्थिक चक्का भी चल पड़े। इसके बाद वर्दी वाले लोकल साहब की बाछें खुल गई। लॉकडाउन में वे चोरी छुपे बालू से तेल निकाल पा रहे थे, पर अब उन्हें मौका मिल गया है। बालू माफियाओं का धंधा भी चरम पर है। माफिया और वर्दी की नए दौर की इस मेल की चर्चा पहले जैसी होने लगी। वर्दी वाले की काली कमाई की जानकारी कप्तान को मिली तो दूसरे साहब से छापेमारी करा दी। इस दौरान बालू लदे वाहनों को जब्त किया गया। इससे लोकल साहब की पोल भी खुल गई। हालांकि आश्चर्य नहीं, उनका पहला कार्यकाल भी दागदार रहा था।
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रेड जोन से रोज आते हैं साहब
कोरोना अब बिहार में भी कोहराम मचा रहा है। रेड, ऑरेंज एवं ग्रीन जोन में बंटे होने से एक से दूसरे इलाके में जाने की मनाही है। यदि जाने की आवश्यकता हो तो फिर जिला प्रशासन से पास निर्गत कराना होगा। यह पास आसानी से नहीं बनते। लेकिन, रेड जोन वाले इलाके से डॉक्टर साहब रोज आते और जाते हैं। उनपर कोई कानून लागू नहीं होता है। वे शान के साथ आ-जा रहे हैं। विभाग से निडर हैं। वे खुद सरकारी व्यवस्था के भी मालिक हैं। मतलब साफ मेरी मर्जी होगी तो आएंगे, वरना नहीं। बिना सूचना के गायब रहने को लेकर वरीय अधिकारी ने निरीक्षण रिपोर्ट में स्पष्टीकरण की मांग भी की है। लेकिन, उन्हें पता है कि इस कागजी प्रक्रिया के अलावा और उन्हें कुछ होने वाला नहीं है। इस कोरोना काल में भी डॉक्टर साहब की अपनी मर्जी चल रही है जबकि उनकी जबावदेही सबसे अधिक है।
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डायरी के लिए खर्चा-पानी
लॉकडाउन ने सबकी माली हालत बिगाड़ दी है। रोज कमाने खाने वाले की दशा बदतर है जिन्हें सरकार वेतन दे रही है, उनकी इस दौर में भी ऊपरी कमाई की भूख बरकरार है। अपने एक कनीय पुलिस अधिकारी का यही हाल है। खाकी वर्दी मानों इन्हें वरदान में मिली है। ऊपरी आमदनी से ही घर गृहस्थी चलाने की व्यवस्था पर अब भी कायम हैं। लॉकडाउन में जहां हर तबका मायूस हैं वहीं यह अधिकारी गुलाबी नोटों का जुगाड़ कर ही ले रहा है। कुछ दिन पहले मारपीट की एक घटना को लेकर केस की डायरी लिखने की कानूनी प्रक्रिया चल रही है। पर, अपने यहां बिना मुद्रा विमोचन का कोई काम तो होता नहीं है। यह पुलिस अधिकारी मंजा हुआ खिलाड़ी है। डायरी पक्ष में लिखानी है तो फिर उनकी सेवा तो करनी ही होगी। वादी-प्रतिवादी दोनों को बुलावा भेजा। बोले, डायरी के लिए उचित खर्चा-पानी तो करना ही होगा।
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फाइन तो देना ही होगा
खाकी वर्दी वाले साहब- अरे ऐ मोटरसाइकिल वाले.., रुको-रुको.. कहां हवा में उड़े जा रहे हो। बाइक सवार- सर, मैं शिक्षक हूं। स्कूल खुल गया है मुझे विभाग ने ज्वाइन करने बुलाया है। वर्दी वाले साहब- ठीक है, पास और ज्वाइनिंग लेटर दिखाओ। बाइक सवार- सर ऐसा कुछ नहीं मेरे पास। हमलोगों को फोन पर सूचना मिली और स्कूल जा रहा हूं। वर्दी वाले साहब- ज्यादा पढ़े हो लगते हो, चलो फाइन दो। एक तो पास नहीं ऊपर से एक बाइक पर दो सवारी। दो हजार रुपये लगेगा। सीमांत थाना क्षेत्र के एनएच 80 पर सुनसान जगह पर थाने की गाड़ी खड़ी करके लॉकडाउन के बहाने गाढ़ी कमाई खूब चल रही है। मास्टर साहब ने जब रसीद की मांग की तो तो बताया गया बुक खत्म हो गया है, बाद में थाने से ले लेना, अभी निकलो। मास्टर साहब ने भी निकलने में ही अपनी भलाई समझा और निकल लिए।
Posted By: Jagran
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