पवित्र रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार सालभर रहता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही ईद-उल-फितर का ऐलान होता है। दुनियाभर में चांद देखकर रोजा रखने और चांद देखकर ईद मनाने की पुरानी परंपरा है। आज भी यह रवायत कायम है।
चांद की रात रमजान के खतम हाेते ही शुरु हाेती है। ईद के चाँद का दीदार होते ही लोग जश्न मनाने लगते हैं। हर तरफ खुशियां नजर आने लगती है। बाजार पूरी तरह से गुलजार हो जाते हैं। हों भी क्यों न ईद की नमाज जो नए कपड़ों मे अदा करनी है। ईद-उल-फित्र की चांद रात में बाजारों में ईद की खुमारी में डूबे लोंग रात भर खरीदारी करते हैं। दुकानदार सामानों की वाजिब कीमत ही लगते हैं। कई चीजें चांद रात में ही बाजारों में मिलती हैं। रात में भी मेले जैसा माहौल होता है।
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भहारत के हैदराबाद, लखनऊ, अलीगढ और कोलकोता जैसे शहरों में चांद रात का नजारा अद्भुत होता है। लखनऊ में वैसे तो पूरे रमजान के महीने में चौक, नक्खास और अमीनाबाद बाजार गुलजार रहते हैं। लेकिन चांद रात का नजारा ही कुछ और ही होता है। रात में बिकने वाली चीजों का स्वाद और खुशबु लाजवाब होती है। कश्मीरी चाय की खुशबु और शाही टुकड़े की मिठास हर किसी को दीवाना बना लेती है। इन सबके बीच ईद मुबारक शब्द कानों को अलग ही सुकून देते हैं।
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चांद की रात घरों में ख्वातीन सिवईंयों की मिठास मुंह में घोलने के लिए पूरी रात तैयारियों में लगी रहती हैं। तरह तरह के जायकेदार पकवान बनाती हैं। तीन तीन पीढ़ियां एक साथ रसोई में होती हैं। पकवानों में दादियों के तजुर्बे और पोतियों की ख्वाइशों का मेल होता है। इतनी साड़ी तैयारियों के बीच रात कब बीत गई पता ही नहीं चलता। कई काम बाकी ही रह जाते हैं।
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चांद रात में इतनी साड़ी व्यस्तताओं के बीच औरतें मेंहदी लगवाती हैं और चूडियाँ पहनती हैं। अपनी पसंद का इत्र लगाती हैं। सुबह पहने जाने वाले कपड़े रात में ही तैयार कर रख दिए जाते हैं। सुबह कहाँ फुरसत मिलेगी। बच्चे भी पूरी रात ईद की तैयारियों में जुटे रहते हैं। क्या बच्चे क्या बूढ़े, चांद रात में सभी में त्यौहार का जोश नजर आता है।