हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा के पीछे संसार यूं ही नहीं पड़ी थी. इस दवा में वाकई दम है. अभी तक विदेशों में हुए अध्ययन यह दावा करते थे, लेकिन अब एम्स में हुए अध्ययन में भी यह पुष्टि हो चुकी है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार विशिष्ट मात्रा में इस दवा की डोज कोरोना मरीजों को लाभ पहुंचा रही है.
सरकार ने भी दावा किया कि जिन स्वास्थय कार्यकर्ताओं को यह दवा दी गई उनमें कोरोना का संक्रमण कम देखा गया. अब तक 100 देश हिंदुस्तान से यह दवा ले चुके हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से यह दवा अब कोविड से बचाव में जुटे अन्य कर्मियों को भी देने की सिफारिश की गई है. अभी तक यह दवा केवल कोविड रोगियों के सम्पर्क में आए लोगों व स्वास्थ्यकर्मियों को ही दी जा रही थी.
एम्स में हुआ अध्ययन: नयी दिल्ली स्थित एम्स में 334 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर यह अध्ययन किया गया. इनमें से 248 को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दी गई, बाकी को नहीं. छह हफ्ते के बाद पाया गया कि जिन लोगों को दवा दी जा रही थी, उनमें कोरोना संक्रमण के मुद्दे कम थे. दूसरे समूह में ज्यादा. इस अध्ययन के बाद आईसीएमआर ने इसे बचाव में प्रभवी माना है.
सुरक्षाकर्मियों को दवा देने की सलाह: स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के प्रयोग को लेकर नए दिशानिर्देश भी जारी किए गए हैं. इनमें कंटेनमेंट जोन में तैनात पुलिसकर्मियों,अर्धसैनिक बलों व अन्य लोगों को भी यह दवा देने की सिफारिश की गई है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने नए सिरे से डोज का भी पुनर्निर्धारण किया है.
बच्चों को नहीं देने की सिफारिश: तीसरा नतीजा यह निकाला गया है कि इससे साइड इफेक्ट भी हो रहे हैं. दिल के मरीजों, गर्भवती महिलाओं, रेटिना संबंधी बीमारियों से ग्रस्त लोगों व 15 वर्ष से छोटे बच्चों को दवा नहीं देने की सिफारिश की गई है.
साइड इफेक्ट: एम्स समेत तीन अस्पतालों में जिन 1323 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को यह दवा दी जा रही थी, उनमें कई किस्म के साइड इफेक्ट देखे गए. 9.8 प्रतिशत में जी मिचलाने, 7.3 में पेट दर्द, 1.5 प्रतिशत को उल्टी, 1.7 हाइपोग्लेसीमिया तथा 1.9 प्रतिशत को कार्डियोवस्कुलर से जुड़ी दिक्कतें हुईं. इसलिए दिशानिर्देशों में बोला गया है कि चिकित्सक की सलाह के बगैर इसे नहीं लेना चाहिए. यह भी साफ किया गया है कि क्लोरोक्वीन बचाव की पूरी गारंटी नहीं है.
विशेषज्ञ की टिप्पणी: वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के निदेशक डाक्टर जुगल किशोर का बोलना है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन पर हुए अध्ययन को गाइडलाइन में शामिल किए जाने के साथ ही प्रकाशित किया जाना चाहिए. इस पर व अध्ययन की आवश्यकता है.