भारत में बच्चों में सीवियर एक्यूट मैलन्यूट्रिशन यानी गंभीर कुपोषण के मामलों से निपटने के लिए देश में कम्युनिटी बेस्ड मैनेजमेंट ऑफ एक्यूट मैलन्यूट्रिशन (सीमैम) एसोसिएशन ऑफ इंडिया का गठन किया गया है। इस एसोसियेशन का उद्देश्य कम्यूनिटी स्तर पर रेडी टू यूज थेराप्युटिक फूड (आरयूटीएफ) को प्रोत्साहित करते हुए गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को खतरे से बाहर निकालने की प्रक्रिया को तेज करना है। एसोसिएशन के मुताबिक घर के खाने के साथ चिकित्सकीय सप्लीमेंट देने से अस्पताल में भर्ती किए जाने वाले कुपोषित बच्चों की संख्या में अच्छी-खासी कमी लाई जा सकती है। 90 प्रतिशत गम्भीर रूप से कुपोषित बच्चों को समुदाय के स्तर पर ही ठीक किया जा सकता है।
यूनीसेफ और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा कराए गए एक व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वे (2016-18) के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित के होने की आशंका 4.9 प्रतिशत है। यानी भारत में 5 साल से कम उम्र वर्ग हर 20 में से एक बच्चा गंभीर कुपोषण का शिकार है। संख्या के हिसाब से देखें तो 60 लाख से ज्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण से प्रभावित हैं। जबकि इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुमान के हिसाब से ऐसे बच्चों की संख्या 80 लाख है।
सीमैम एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट अक्षत खंडेलवाल ने कहा भारत ने कई मोर्चों पर शानदार प्रगति की है। लेकिन बच्चों में गंभीर कुपोषण की समस्या को दूर करने में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। यूनीसेफ और डब्ल्यूएचओ के मुताबिक आरयूटीएफ छह महीने से पांच साल तक के बच्चों में गंभीर कुपोषण के इलाज के लिए बेहतर इमरजेंसी तरीका है। उन्होंने कहा कि कुपोषण रोकने के लिए हमें बच्चों तक पोषक भोजन पहुंचाना होगा। लेकिन जब किसी कारण से बचाव का तरीका काम नहीं कर पाता है और बच्चा गंभीर रूप से कुपोषण की चपेट में आ जाता है। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि कई राज्यों में कई कम्युनिटी बेस्ड पायलट प्रोजेक्ट के दौरान गंभीर कुपोषण से निपटने में आरयूटीएफ के प्रयोग के सफल नतीजों ने हमारे विश्वास को मजबूत किया है।