कोरोना वायरस: बच्चों पर लंबे समय तक रहेगा अदृश्य खतरा, मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर

बच्चों में कोरोना संक्रमण के मामले भले ही कम रहे हों लेकिन इस महामारी का उनके भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना का एक अदृश्य खतरा बच्चों को भविष्य में लंबे समय तक प्रभावित करेगा। घरों में कैद बच्चे भले ही आवश्यक कर्मचारी या फ्रंटलाइन योद्धा नहीं हैं लेकिन वे दुनिया का साझा भविष्य जरूर हैं। लिहाजा, उन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। बाल चिकित्सा के विशेषज्ञों द्वारा बताए वो पांच प्रमुख प्रभाव जो दुनियाभर के बच्चों पर पड़ रहे है।

टीकाकरण से हुए दूर बच्चों को बीमारियों से बचाने का एक ही तरीका होता है टीकाकरण। लेकिन कोरोनाकाल में दुनियाभर में घरों में कैद बच्चों में टीकाकरण की दर तेजी से घट गई है। पीडियाट्रिशनों का कहना है कि बच्चे अचानक खसरा, काली खांसी से लेकर मेनिन्जाइटिस तक के जरूरी टीकों से दूर हो गए हैं। घर से बाहर निकलने से डर रहे अभिभावक वैक्सीन की तय तारीख आगे के लिए टाल रहे हैं। सरकारों ने भी बच्चों को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है। 24 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम रोक दिया गया है।
भावनात्मक दबाव और बेचैनी से घिरे डॉक्टरों का कहना है, बच्चों के मन और दिमाग में भी महामारी का भय व्याप्त है। परिवार में बड़े सदस्यों में घबराहट का असर उन पर भी पड़ रहा है। कई घरों में बड़े-बुजुर्गों की कोरोना से मौत बच्चों के लिए सदमे जैसा है। इसमें दो राय नहीं है कि अभिभावक उनका पूरा खयाल रख रहे हैं लेकिन उन्हें भय से निपटने के लिए वर्तमान और भविष्य में ज्यादा मदद की जरूरत रहेगी।
सामाजिक दूरी के कारण टूटा आपसी जुड़ाव जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं उनकी भावनात्मक जरूरतें भी बदल जाती हैं। महामारी के दौर में माता-पिता, परिवार दबाव में हैं। लिहाजा बच्चे उनके साथ पहले जैसा जुड़ाव महसूस नहीं कर रहे हैं। वे अन्य बच्चों के संपर्क से भी दूर हो गए हैं। साथ ही मास्क पहनने, बार-बार हाथ धोने, लोगों से दूर रहने का भय उन पर हावी है। पार्क और खेलकूद की जगहें उनके लिए सपने जैसी हो गई हैं।
साधनों के अभाव में गरीब बच्चों पर ज्यादा दबाव दुनिया में गरीबी सबसे बड़ी बीमारी है। गरीब परिवारों के बच्चे आम दिनों में ही बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करते हैं। अब कोरोना महामारी में भी सबसे ज्यादा प्रभावित वर्ग ये बच्चे ही हैं, जिनके माता-पिता के पास कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं है। कई दक्षिण अमेरिकी, अफ्रीकी, मध्य पूर्व और एशियाई देशों में इनके पास पर्याप्त स्वच्छता और आजीविका के साधन तक नहीं हैं। लॉकडाउन के बाद इनमें कोरोना संक्रमण का खतरा मंडराता रहेगा।
पढ़ाई का नुकसान आजकल स्कूल बंद हैं तो शिक्षक ऑनलाइन कक्षाएं दे रहे हैं। लेकिन बड़ी तादाद में ऐसे बच्चे हैं, जो इस सुविधा से अछूते हैं। जरूरी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों के अभाव में कमजोर वर्ग के बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। अगर वे किताबों से भी पढ़ रहे हैं तो उनके सवालों के जवाब देने वाला कोई नहीं है। जब ऐसे बच्चे स्कूलों में लौटेंग तो इन पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत रहेगी।
डॉक्टरों की अभिभावकों से अपील ऐसे कई बच्चे हैं, जो अन्य बीमारियों से ग्रस्त हैं लेकिन पर्याप्त इलाज नहीं मिल रहा है। हाल ही में सामने आए कुछ मामलों में बच्चे ल्युकेमिया जैसी बीमारियों से ग्रस्त थे लेकिन अभिभावक उन्हें अस्पताल की इमरजेंसी में लाने से डर रहे थे। डॉक्टरों ने अभिभावकों से अपील की है कि महामारी का मतलब यह नहीं है कि अन्य इलाज पूरी तरह बंद हैं। बच्चों को जरूरी इलाज के लिए अस्पताल लेकर आएं। इसमें अभिभावक और बच्चों, दोनों का भला है।

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