फेफड़े के कैंसर की कैसे कराए जांच व जाने इसके लक्षण

फेफड़े के कैंसर को लंग कार्सिनोमा भी कहते हैं. इसमें कैंसर कोशिकाएं अनियमित रूप से एक या दोनों फेफड़ों में विकसित होने लगती हैं. इस रोग के ज्यादातर मुद्दे धूम्रपान करने वालों में सामने आते हैं.

रोग की आरंभ में अनियमित रूप से बढ़ने वाली कोशिकाएं ट्यूमर का रूप लेने लगती हैं व फेफड़ों के कार्य यानी रक्त के जरिए सारे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने, को बाधित करती हैं. जानते हैं रोग के लक्षण व उपचार के बारे में-
लक्षण : अत्यधिक कफ बनना या कफ के साथ खून आना, गला बैठना, सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द व बिना किसी कारण के वजन घटना. आमतौर पर इनमें से कुछ लक्षण मौसम के परिवर्तन से भी होते हैं. लेकिन जिन्हें दवा लेने के बावजूद लाभ न हो या हर बार कफ के साथ खून आए तो तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए.
इन्हें खतरा : आनुवांशिकता के अतिरिक्त धूम्रपान की लत, तंबाकू, धूम्रपान करने वालों के साथ रहने वाले, धूल-धुएं वाली स्थान में रहना या ऐसी चीजें भोजन में शामिल करना जिनमें कार्सिनोजेनिक केमिकल अधिक हो.
3 तरह से होती जांच रोग की पहली स्टेज में पहचान से 80 प्रतिशत मरीजों का उपचार संभव है. इसके लिए हर स्तर पर भिन्न-भिन्न तरह की जांचें होती हैं. तीन तरह से रोग की पहचान करते हैं - 1. प्राइमरी स्टेज : चेस्ट एक्स-रे व सीटी स्कैन. 2. सेकंड्री स्टेज : ब्रॉन्कोस्कोपी, ईबस (एंडोब्रॉन्कियल अल्ट्रासाउंड) या बायोप्सी. 3. एडवांस्ड स्टेज : सारे शरीर का पैट सीटी स्कैन, मीडियास्टीनोस्कोपी ( मुंह से सांस नली के जरिए इंस्ट्रूमेंट को डालकर फेफड़ों की स्थिति का पता लगाते हैं ) व एमआरआई.
इलाज आमतौर पर कीमोथैरेपी, ओरल टारेगेटेड थैरेपी, इम्यूनोथैरेपी व रेडिएशन थैरेपी के जरिए उपचार किया जाता है.
बचाव धूम्रपान और शराब के साथ पैसिव स्मोकिंग और केमिकल युक्त खानपान से दूर रहें. खानपान में लो फैट व हाई फाइबर जैसी चीजों के अतिरिक्त ताजे फल और सब्जियां खाएं. साबुत अन्न इस कैंसर की संभावना को घटाते हैं. प्रतिदिन 1-2 घंटे की एरोबिक अभ्यास करें.

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