एंटीबायोटिक्स दवाइयों का प्रयोग जीवाणु (बैक्टीरिया) व इससे होने वाले संक्रमण को समाप्त करता है. लेकिन दुनिया में एंटीबायोटिक्स का बैक्टीरिया पर कम होता प्रभाव चर्चा का विषय बना हुआ है.
जीवाणु और इसके संक्रमण को रोकने व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेद में भी ऐसी कई औषधियां हैं जो एंटीबायोटिक्स का एक अच्छा विकल्प हैंं. इन्हें नेचुरल एंटीबायोटिक्स भी कहते हैं. आयुर्वेद में प्राकृतिक संक्रमणरोधी औषधि का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना है. जानें इसके बारे में-
आधुनिक चिकित्सा में भी राइनोप्लास्टी और प्लास्टिक सर्जरी आदि में बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए घी, शहद, हल्दी व तिल जैसी औषधियों का प्रयोग किया जा रहा है. सर्जरी के दौरान एंटीबायोटिक्स की स्थान पर आयुर्वेद औषधि गिलोय, सहजना, आंवला, हल्दी के अर्क आदि का प्रयोग किया था. इस दौरान यह बात भी सामने आई थी कि अन्य औषधि के मुकाबले शहद से घाव चौथाई समय में ही भर गए थे. जानते हैं आयुर्वेद में उपस्थित ऐसी औषधियों के बारे में जो बैक्टीरिया, वायरस व फंगस के संक्रमण से बचाती हैं-
रोगों के उपचार में उपयोगी जड़ी-बूटियां- मलेरिया और बुखार - तुलसी, अदरक, इंद्र, पिप्पली, जायफल, त्रिफला, कालीमिर्च, सुदर्शन या हरड़ का क्वाथ या चूर्ण शहद के साथ उपयोगी होंगे. लिवर और प्लीहा- सुदर्शन, कुटकी, चिरायता, भृंगराज, ग्वारपाठा, पिप्पली, इंद्र जौ, हल्दी, कालीमिर्च, दालचीनी, इलायची, हरड़ का क्वाथ या चूर्ण शहद के साथ लें. पेट में कीड़े- विडंग, हल्दी, पिप्पली, हरड़ का क्वाथ या चूर्ण शहद के साथ ले सकते हैं. पेट के कीड़े मर जाएंगे. मूत्र रोगों के लिए- चंदन, खस, आंवला, हल्दी, गुग्गुल, धनिया का क्वाथ या चूर्ण शिलाजीत व शहद के साथ ले सकते हैं. आंत और पेट से जुड़े रोग- अजवाइन, गिलोय, हल्दी, लहसुन, दालचीनी, हरड़, अदरक, आंवला, तुलसी, अमलतास, कुटज, सहजन, लौंग, धनिया, ग्वारपाठा का चूर्ण या पेस्ट बनाकर शहद के साथ खाएं. नाक, गला-फेफड़े में संक्रमण- कफ की समस्या और सांस रोग आदि में तुलसी, गिलोय, मुलेठी, हल्दी, दालचीनी, लौंग, अदरक का क्वाथ या शहद के साथ चूर्ण ले सकते हैं. त्वचा पर संक्रमण और सूजन- शिरीष छाल, मुलेठी, मंजीठ, चंदन, इलायची, तुलसी, जटामांसी, हल्दी, दारूहल्दी, नीम का लेप लगाएं. घाव भरने के लिए - बरगद-पीपल या गूलर की छाल, मुलेठी, मंजीठ, शहद, त्रिफला, नीम, तुलसी, ग्वारपाठा, दारूहल्दी का चूर्ण शहद या पानी के साथ मिलाकर खाएं और लगाएं भी.
ऐसे करें औषधियों का प्रयोग- हींग या लहसुन को दवा में मिलाने से पहले थोड़े से गौ माता के घी में भूनकर फिर अन्य दवाओं को इसमें मिलाएं. बच्चे, बड़े से लेकर महिलाएं भी इन नुस्खों को कठिनाई के आधार पर विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ले सकती हैं. औषधियों को शहद के साथ लेने से उसके गुणों व प्रभाव में वृद्धि होती है. बताई गईं औषधियों से तैयार काढ़ा 25-50 एमएल की मात्रा में लें. सामान्यत: इन तरीकों को 10-20 दिन या स्थिति के अनुसार देने के अतिरिक्त 1-2 माह या रोग अच्छा न हो तब तक देते हैं. ताजा औषधियां उपलब्ध हों तो इनका रस कार्य में लें. सूखी औषधियों का चूर्ण या काढ़ा बनाकर कार्य में लें. बताई गईं सभी औषधियों का चूर्ण मिलाकर 3-6 ग्राम की मात्रा में लें.
बालों से संबंधित रोग- रूसी, सिर की स्कीन पर फुंसी या फंगल इंफेक्शन, बालों का झडऩा आदि दिक्कतों में आंवला, त्रिफला, नीम के पत्ते या छाल, दारूहल्दी, गेंदे का फूल, शिरीष की छाल, गुड़हल के पत्ते या फूल का काढ़ा बनाकर उससे बाल धोएं.
मुंहासे- मंजीठ, तुलसी,कूठ, गिलोय, देवदारू या नीम का लेप प्रभावित भाग पर लगाएं और इनका चूर्ण शहद के साथ लें. एक सर्जरी में एंटीबायोटिक्स की स्थान आयुर्वेद औषधि शहद का प्रयोग किया गया. अन्य औषधि के मुकाबले इससे घाव जल्दी भर गए थे.