सूर्य नमस्कार सारे शरीर के लिए लाभकारी है. यह मन को एकाग्र करने में भी मदद करता है. सूर्य नमस्कार मेटाबोलिज्म में सुधार लता है व मधुमेह रोगियों को लाभ पहुंचाता है.
वजन नियंत्रित रखता है सूर्य नमस्कार
सबसे पहले दोनों पैरों को आपस में जोड़ते हुए बिना कंधों को झुकाएं सीधे खड़े हो जाएं. हाथ शरीर के पास व ठोड़ी ज़मीन से समानांतर हो.
शरीर को दोनों पैरों पर समान रूप से संतुलित करें. इस स्थिति को समस्थिति कहते हैं.
पहले चरण को करने के लिए सांस लेते हुए अपने हाथों को जोड़ें व नमस्कार मुद्रा में अपनी छाती के सामने रखें. अब धीरे-धीरे अपनी सांस छोड़ें. इसे प्रणाम आसन बोला जाता है.
दूसरे चरण को करने के लिए सांस अंदर लेते हुए अपने शरीर को कमर से ऊपर की ओर खींचें. दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाते हुए सिर व कमर को पीछे की ओर झुकाएं. पैर सीधे रखें. इस सरल को हस्तउत्तानासन कहते हैं.
अब तीसरे चरण के लिए धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए शरीर को आगे की ओर तब तक झुकाएं जब तक हथेलियां पैरों के दोनों तरफ जमीन को छू न लें. ध्यान रखें कि नीचे झुकते समय भुजाएं व सिर एक ही साथ हों, इस आसन को पादहस्त आसन बोला जाता है.
चौथे चरण को करने के लिए एक गहरी सांस अंदर लें व अपने दाहिने पैर को पीछे की ओर ले जाएं व दाहिने घुटने को नीचे रखें. इस मुद्रा में यह सुनिश्चित करें कि आपका दायां पैर पंजों पर हो व बायां पैर 90 डिग्री के एंगल पर हो, दोनों हथेलियां ज़मीन पर, कूल्हे पीछे व ठोड़ी ऊपर की ओर हो । इस आसन को अश्वसंचालन आसन कहते हैं.
अब पांचवें चरण के लिए गहरी सांस छोड़ते हुए अपना बाएं पैर इस प्रकार पीछे ले जाएं कि वह आपके दाएं पैर की सीध में हों. सुनिश्चित करें कि आपके हाथ व कंधे सीधी रेखा में हों. कंधे पीठ व कूल्हे भी एक ही सीध में हों. इस आसन को संतुलन आसन बोला जाता है. इस स्थिति में धीरे-धीरे सांस लें.
छठे चरण में सांस छोड़ते हुए दोनों घुटनों को एक साथ जमीन पर रखें व अपनी छाती व माथे को भी जमीन पर रखें. सुनिश्चित करें कि आपके कूल्हे ऊपर की ओर कोहनियों शरीर के पास हों. इस आसन को साष्टांग नमस्कार आसन कहते हैं क्योंकि इससे शरीर के आठ भिन्न-भिन्न अंग जैसे आपके दोनों पांव के पंजे, हथेलियां, घुटने, छाती व माथा जमीन को छूते हैं. ध्यान रखें शरीर का वजन इन आठों अंगों पर समान रूप से पड़े.
अब सातवें चरण के लिए सांस अंदर लें व अपनी श्रोणि को नीचे लाते हुए सिर व छाती को आगे की ओर सरकाएं व शरीर के ऊपरी हिस्से को नाभि तक उठाएं. सुनिश्चित करें आपके पैरों के पंजे बाहर की ओर व पैर सीधे हों. इस आसन को भुजंगासन बोला जाता है.
आठवें चरण के लिए धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए अपने पैरों के पंजों को अंदर की तरफ लें व अपने कूल्हों को उतना ऊपर ले जाएं कि आपका शरीर एक पर्वत का आकर ले ले. सुनिश्चित करें, दोनों पैर सीधे, हथेलियां जमीन पर व आपका सिर भुजाओं के बीच हो. कोशिश करें कि एड़ियां जमीन को छू सकें. इस आसन को पर्वत आसन बोला जाता है.
नौवें चरण के लिए अपने कूल्हों को नीचे लाएं व सांस लेते हुए दाहिने पैर को आगे लाएं व अपने बाएं पैर के घुटने को नीचे रखते हुए पुनः अस्वसंचालन आसन में आ जाएं.
दसवें चरण में अपना बायां पैर भी आगे लाएं व सांस छोड़ते हुए पुनः पादहस्तासन में आ जाएं.
ग्यारहवें चरण को करने के लिए धीरे-धीरे सांस अंदर लेते हुए अपने शरीर को सीधा करते हुए अपने दोनों हाथों को उपर की ओर ले जाएं व पुनः हस्तउत्थान आसन में आ जाए. सुनिश्चित करें कि ऊपर आते समय आपका सिर व भुजाएं एक साथ ऊपर आएं
बारहवें चरण के लिए धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए प्रणाम सरल में सीधे आ जाएं.
अब इस सारे अनुक्रम को अपने बाएं पैर से दोहराएं.
योग विशेषज्ञ डाक्टर नीलोफर से जानिए इसके फायदे
बढ़ेगी फेफड़ों की क्षमता: यह फेफड़ों की क्षमता बढ़ने में सहायता करता है.
मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद: सूर्य नमस्कार मेटाबोलिज्म में सुधार लता है व मधुमेह रोगियों को लाभ पहुंचाता है.
मांसपेशियां होंगी मज़बूत: सूर्य-नमस्कार मांसपेशियों को मजबूत बनाने के साथ वजन को नियंत्रित करता है.
उच्च रक्तचाप यानी हाई बीपी के रोगियों को यह आसन सावधानी पूर्वक करना चाहिए.
हर्निया व पेप्टिक अलसर के रोगियों को सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए.
सायटिका, सर्वाइकल व एक्यूट आर्थराइिटस के रोगियों को यह आसन नहीं करना चाहिए.
महिलाओं को मासिक धर्म के समय व प्रेग्नेंसी में यह आसन नहीं करना चाहिए.