विपक्षी नेताओं का सरकार से सवाल, महज़ चार घंटे का समय देकर पूरा लॉक डाउन कर देना क्या वाजिब फ़ैसला है?

लाइव सिटीज, सेंट्रल डेस्क : विपक्ष ने सरकार पर एक बार फिर जोरदार हमला किया है. विपक्षी नेताओं ने कहा कि सड़क पर बेहाल-बेघर इन ग़रीबों की ये तस्वीरें देखकर रूह कांप गई. किस बात का लॉकडाउन, किस बात की नौटंकी? पूरा देश सभी सामाजिक, धार्मिक, भौगोलिक और राजनीतिक भेदभाव भुलाकर इस विपदा की घड़ी में एक पैर पर खड़ा होकर सरकार के हर निर्देश की पालना कर रहा है. अगर देश की हुकूमत चाहती तो आर्थिक भेदभाव के शिकार इन लोगों की बेबसी और लाचारगी भी समाप्त कर सकती थी.

विपक्षी नेताओं ने कहा कि फिर दोहरा रहा हूं. हम सब एकजूट होकर सरकार के साथ खड़े है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम सरकार की ख़ामियों को भी उजागर न करें. जो लोग सरकार की विचारधारा को नहीं मानते उन्होंने भी इस संकट की घड़ी में स्वास्थ्यकर्मियों की हौसला अफजाई के लिए प्रधानमंत्री की एक आवाज़ पर थाली और ताली बजाई. वो Scientific था या Non-scientific इस पर बहस हो सकती है, लेकिन इस महामारी के ख़िलाफ़ वह एकजूटता दिखाने का प्रयास था और लोगों ने सक्रियता के साथ सहयोग भी किया.
लेकिन क्या आपको निम्नलिखित सवाल इस मज़बूत सरकार के मज़बूत नेता से नहीं करने चाहिए?
ऐसे आकस्मिक एकतरफा फैसले बीमारी रोकने के लिए किए जाते हैं, लेकिन ज़रा फिर इन तस्वीरों को देखिए. ये डरावनी छवियां है. कहां है सोशल डिस्टन्सिंग? क्या ये ग़रीब लोग सरकार के अराजक फ़ैसले का शिकार नहीं है? क्या पशुओं की तरह बसों में ठूंसने वाले ग़रीबों पर अब कोरोना का कोई ख़तरा नहीं? इनके आवागमन पर रोक भी सरकार लगा रही है और भेज भी सरकार रही है? ग़ज़ब विरोधाभास है? समाज की अंतिम पायदान पर खड़े ग़रीबों ने क्या गुनाह किया था?
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हवाई जहाज़ों में भर-भर कर देश में बीमारी लाने वाले तो अपने आलीशान मकानों में कोरेंटाइन कर रहे हैं, लेकिन इन बेचारे करोड़ों ग़रीबों को क्वारेनटाइन तो छोड़िए, लॉकडाउन का सही अर्थ भी नहीं पता होगा? ये बेचारे वो असहाय सच्चे देशभक्त नागरिक है जो हर कदम पर हरदम अमीरों और सरकारों के हाथों ठगे और छले जाते हैं. अंत में मेरे दाता दयाल से यही अरदास कता हूं कि आप अपने रहमों करम से इन ग़रीबों की हार्ड इम्यूनिटी को और मज़बूत बनाइए ताकि हम सब इस महामारी से बच सके.

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