कोरोना वायरस के इस दौर में रोज ब रोज कई मिथकों और अफवाहों से भी पाला पड़ रहा है। खुद को सुरक्षित रखने के लिए यह भी जरूरी है कि केवल सही सूचनाओं पर ही भरोसा किया जाए। ऐसे में सच्चाई जानने के लिए डब्लूएचओ की गाइडलाइंस को मानना आवश्यक है। जानें किस -किस तरह के मिथक प्रचलित हैं इस बारे में-
मिथक : ठंडे तापमान में वायरस मर जाता है। सच्चाई : इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। आमतौर पर मानव शरीर का तापमान 36.5-37.5 डिग्री सेल्सियस रहता है, भले ही बाहर का तापमान कितना भी क्यों न हो। ऐसे में सिर्फ हाथों की बेहतर सफाई ही वायरस के प्रभाव से बचा सकती है।
मिथक : गर्म पानी से स्नान करने पर वायरस का प्रकोप कम हो जाएगा।
सच्चाई : तापमान का कोई प्रभाव वायरस पर नहीं पड़ता। यहां भी वही थ्योरी काम करती है कि इंसान के शरीर का तापमान 36.5 से 37.5 डिग्री सेल्सियस रहता है भले ही बाहरी तापमान कितना भी हो। ज्यादा गर्म पानी से नहाने पर त्वचा ड्राई हो सकती है। इसका एकमात्र उपाय है, एल्कोहलयुक्त हैंड रब से बार-बार 30-60 सेकंड्स तक हाथों की सफाई।
मिथक : कोरोना वायरस मच्छर के काटने से भी फैल सकता है।
सच्चाई : अभी तक ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं मिला है कि कोरोना वायरस मच्छर के काटने से फैल सकता है। यह रेस्पिरेटरी वायरस है, जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने के दौरान दूसरे तक पहुंचता है। ऐसे में सोशल डिस्टेंस या सामाजिक दूरी जरूरी है, खासतौर पर ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें, जिसे खांसी हो।
मिथक : हैंड ड्रायर्स वायरस को मारने में सक्षम हो सकते हैं।
सच्चाई : इस तथ्य में कोई सच्चाई नहीं है। नए कोविद-19 पर टेंपरेचर का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हाथों की अच्छी सफाई के बाद इन्हें साफ हैंड टॉवेल से पोछें या हैंड ड्रायर्स से सुखा लें।
मिथक : अल्ट्रावायलेट डिसइन्फेक्शन लैंप से वायरस को नष्ट किया जा सकता है।
सच्चाई : यूवी लैंप को हाथों को स्टर्लाइज करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि यूवी रेडिएशन त्वचा के लिए हानिकारक होता है।
मिथक : थर्मल डिटेक्टर से कोरोना वायरस से ग्रस्त व्यक्ति का पता चल सकता है।
सच्चाई : थर्मल डिटेक्टर से केवल यह पता चल सकता है कि व्यक्ति को बुखार है या नहीं। यह बुखार कोरोना वायरस से ग्रस्त होने के कारण हो सकता है और फ्लू से भी।
मिथक : शरीर पर एल्कोहल या क्लोरीन स्प्रे करने से भी वायरस नष्ट हो सकता है।
सच्चाई : वायरस शरीर में प्रवेश कर चुका है तो कोई भी स्प्रे इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बल्कि ऐसा करने से नुकसान हो सकता है। एल्कोहल और क्लोरीन का छिड़काव खास जगहों पर ही किया जा सकता है और वह भी उन पर दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार।
मिथक : फ्लू या निमोनिया का वैक्सीन कोरोना वायरस से बचाव में सहायक हो सकता है।
सच्चाई : नहीं। फ्लू, निमोनिया या इन्फ्लूएंजा के टीके इससे बचाव नहीं कर सकते। कोरोना वायरस नया है और इसका वैक्सीन आना बाकी है। फिर भी बच्चों-बड़ों या बुजुर्गों को ये टीके लगवाएं, ताकि उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़े और उन्हें अन्य संक्रमण न घेरें।
मिथक : लहसुन खाने से वायरस का प्रकोप कम हो सकता है।
सच्चाई : लहसुन शरीर के लिए लाभकारी है। इसमें कुछ एंटीमाइक्रोबियल तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए लाभकारी होते हैं, लेकिन अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि लहसुन खाने से कोरोना संक्रमण से बचा जा सकता है।
मिथक : नया कोरोना वायरस बुजुर्गों को ज्यादा प्रभावित करता है।
सच्चाई : अभी तक मिले आंकड़ों के मुताबिक, हर उम्र के लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। बुजुर्ग या ऐसे लोगों को, जिन्हें पहले से अस्थमा, डायबिटीज, हृदय रोग जैसी समस्याएं हैं, इस वायरस संक्रमण से ज्यादा समस्याएं हो सकती हैं, क्योंकि उनकी इम्युनिटी कमजोर होती है। डब्लूएचओ ने हर उम्र के लोगों को सलाह दी है कि वे साफ-सफाई की आदतें बनाए रखें।
मिथक : एंटीबायोटिक का कोर्स करने से वायरस संक्रमण से बचाव संभव है।
सच्चाई : एंटीबायोटिक्स वायरस से नहीं, बैक्टीरिया से बचाते हैं। चूंकि कोरोना वायरस है, इसलिए एंटीबायोटिक का इस पर कोई असर नहीं पड़ता। हालांकि अगर कोई अस्पताल में भर्ती है तो उसे अन्य संक्रमणों से बचाने के लिए एंटीबायोटिक दी जा सकती है।