सदर अस्पताल दलालों का अड्डा बन गया है। इनके द्वारा बेहतर इलाज दिलाने के नाम पर अस्पताल आए मरीजों की जेबें ढीली की जा रही हैं। दलाल अपनी मीठी बातों में मरीजों व उनके परिजनों को फंसाकर प्राइवेट अस्पताल में इलाज को लेकर उन्हें प्रेरित करते हैं। दरअसल सदर अस्पताल में दूर-दूर से मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन समय से इलाज न होने पर वे दलालों के ठगी का शिकार हो जाते हैं।
#img#सदर अस्पताल में दलालों के सक्रिय होने के कई मुख्य कारण हैं। समय से संबंधित डॉक्टरों का उपलब्ध न होना और अस्पताल में लगे उपस्करों का ठीक ढंग से काम न करना भी उनमें से एक है। बुधवार को जब अस्पताल परिसर में दलालों की सक्रियता की पड़ताल की गयी तो पाया गया कि कई दलाल लाइनों में खड़े मरीजों व उनके परिजनों को बाहर इलाज कराने को लेकर उकसा रहे थे। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तब देखने को मिला जब बुधवार को सड़क दुघर्टना में घायल दो सहोदर भाइयों को रेफर किया गया। मरीज का पिता गंभीर रूप से घायल बेटों की इलाज के लिए उन्हें गोरखपुर ले जाना चाहता था। इसके लिए एक प्राइवेट एंबुलेंस को बुलाया गया। लेकिन पहले से खड़ा दूसरा प्राइवेट एंबुलेंस चालक झगड़े पर उतर आया। आखिरकार मरीज को उसी के एंबुलेंस में ले जाया गया।
दूसरी ओर ओपीडी का समय सुबह आठ बजे से है। लेकिन लगभग सभी कक्षों में डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे। बावजूद इसके कक्षों के आगे मरीज इलाज को लेकर सुबह से लाइन में खड़े थे। कई बार ऐसा भी होता है कि इमर्जेंसी जैसे केसों में मरीजों के परिजन डॉक्टर के नहीं रहने पर परेशान होकर इधर-उधर भागते नजर आते हैं। ऐसे में आसानी से प्राइवेट अस्पतालों द्वारा बैठाए गए दलाल उनकी मानसिक स्थिति भांपकर उन्हें यहां समय व समुचित इलाज न मिलने की बात कहकर बहकाते हैं। कई बार ऐसे मामलों में हो-हल्ला के बावजूद भी अस्पताल प्रशासन की ओर से कोई आवश्यक कार्रवाई नहीं की जाती है। जिसके कारण दलालों का हौंसला बुलंद रहता है।
अधिकतर जांच प्राइवेट स्तर पर ही होता है सदर अस्पताल में दलालों की सक्रियता का एक कारण यह भी है कि यहां के डॉक्टरों द्वारा लिखे गए अधिकतर जांच परिसर में नहीं होते हैं। मरीजों को इसके लिए प्राइवेट जांच केंद्रों का ही सहारा लेना पड़ता है। सूत्रों की मानें तो डॉक्टरों के इशारे पर चिंहित जांच केंद्रों पर जांच कराने पर मोटी रकम मिलती है। सदर अस्पताल में एक्सरे मशीन, अल्ट्रासाउंड मशीन व सिटी स्कैन जैसी सुविधाएं यहां नहीं है। ऐसे में दलालों के माध्यम से इसका प्रत्यक्ष लाभ डॉक्टरों को मिल रहा है।
रात को महिला वार्ड व एसएनसीयू में नहीं आते हैं डॉक्टर सदर अस्पताल में सरकार की मुफ्त इलाज की लालसा लिए लोग आते हैं। जबकि यहां डॉक्टरों की मनमानी से वे क्षुब्ध होकर प्राइवेट अस्पतालों में जाना पसंद करते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि अस्पताल में मरीज की इलाज कर रहे डॉक्टर ही स्वयं किसी प्राइवेट अस्पताल में जाने के लिए प्रेरित करते हैं। डॉक्टर पर भरोसा कर मरीज उनके चंगुल में फंस जाते हैं। इसमें डॉक्टरों व दलालों की भी मिलीभगत होती है।
लगभग सभी डॉक्टरों के हैं प्राइवेट क्लीनिक सदर अस्पताल में कार्यरत लगभग सभी डॉक्टरों का शहर में अपना भी अस्पताल है। जहां वे प्रतिदिन मरीजों का इलाज करते हैं। कई बार तो ऐसा भी देखा जाता है कि पूरे दिन अपने अस्पताल में मशगूल डॉक्टर सरकारी अस्पताल में आते ही नहीं है। जिसके कारण उनकी कुर्सी खाली पड़ी रहती है और मरीज लाचारी में प्राइवेट अस्पतालों की ओर रूख करते हैं।
प्रसव पीड़िता ले जाने पर मिलता है पांच हजार अस्पताल में जांच के बाद दूसरा सबसे बड़ा कमाई का जरिया प्रसव पीड़िता हैं। प्रसव पीड़िता यदि पीड़ा होने पर रात में अस्पताल में आती है तो उसे अक्सर महिला डॉक्टर नहीं मिलती हैं। सहायक कर्मचारियों के भरोसे ही पीड़िता का इलाज होता है। ऐसे में परिजनों को किसी अनहोनी का हवाला देते हुए महिला डॉक्टरों की एजेंट उन्हें प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती कराने की सलाह देती हैं। ऐसा करने पर महिला डॉक्टरों के साथ-साथ एजेंट को भी मोटी कमाई होती है। एजेंट को इसके बदले पांच हजार रुपये उपहार स्वरूप अस्पताल की ओर से दिया जाता है।
क्या कहते हैं हेल्थ मैनेजर सदर अस्पताल के स्वास्थ्य प्रबंधक एसरारूल हक ने इस संबंध में बताया कि ऐसा मामला सामने नहीं आता है। अगर ऐसी बात है तो अनधृकित रूप से इस तरह से काम करने वालों को चिन्हित कर उन पर कार्रवाई की जाएगी। साथ लोगों को दलालों के चंगुल में नहीं फंसना चाहिए। सरकारी सुविधाओं पर भरोसा रखना चाहिए।