सीनेट की बैठक में टूटी कई परिपाटियां

दरभंगा। संस्कृत विश्वविद्यालय में शनिवार को आयोजित सीनेट की 43 वीं वार्षिक बैठक में कई परिपाटियां खुलेआम टूट गई। लेकिन, किसी भी सीनेट के सदस्यों का इस ओर ध्यान नहीं गया। बैठक में अधिकांश सदस्य संस्कृत शिक्षा के सतही विकास पर गहन-चितन से दूर रहे। बैठक का ज्यादा समय कुलपति की प्रशंसा में ही निकल गया। सच पूछिए तो वक्ताओं में कुलपति के गुणगान करने की होड़ लगी रही। यहां तक कि कई सदस्य सदन के बीच उठ-उठ कर वीसी चालीसा पढ़ते देखे गए। न जाने ऐसा व्यवहार कर सदस्य किसको क्या संदेश देना चाहते थे? ध्यान देने वाली बात यह रही कि मंचासीन दो-दो कुलपति डॉ. देव नारायण झा व डॉ. अरविद कुमार पांडेय को बोलने तक का मौका ही नहीं दिया गया। दोनों अतिथि बनकर अंत तक चुपचाप बैठे रहे। इतना ही नहीं, अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के क्रम में सदस्यों द्वारा जो सवाल व मुद्दे उठाए जाते हैं, उसका कुलपति बाद में जवाब देकर सदन को संतुष्ट करते हैं। लेकिन, ऐसा भी इस बार नहीं हुआ। कुलपति ने अंत तक न तो कोई जवाब दिया और न ही किसी सदस्यों ने ऐसा करने के लिए उनसे अनुरोध किया। सदस्यों को भोजन करने की चिता पड़ी थी। हद तो तब हो गई जब कार्यक्रम के समापन के मौके पर राष्ट्र गान तक नहीं गाया गया, जबकि समापन के मौके पर ऐसी वर्षों से परंपरा रही है। सदन में मजाक जैसी स्थिति कई बार बनी रही। कई सदस्यों ने तो बजट प्रस्ताव आने से पहले ही उसको अनुमोदित करने की वकालत कर दी। कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह कि सीनेट की गरिमा व महत्ता जो होनी चाहिए वैसी नहीं रही।

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दो सदस्यों ने बैठक में जताई घोर आपत्ति :
सीनेट के दो सदस्य डॉ विनोदनंद झा व सुरेश प्रसाद राय ने कुलपति के अभिभाषण के उस अंश पर घोर आपत्ति जताई, जिसमें सीनेट सदस्यों को कुलपति ने भगवान कृष्ण के रूप में देखते हुए उनका अभिवादन किया है। डॉ. झा ने तो यहां तक कह दिया कि एक तरफ सदस्यों को भगवान माना जाता है और दूसरी तरफ उसे कार्यक्रमों में कायदे से सम्मान भी नहीं दिया जाता है, जो हास्यास्पद लगता है।

Posted By: Jagran
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