संवाद सूत्र, अंबा (औरंगाबाद): स्वास्थ्य विभाग के जिम्मे आमजनों के स्वास्थ्य की चिंता करने का काम तो है, लेकिन विभाग का अपने ही कर्मियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति उदासीन रवैया हैरान करने वाला है। आमजनों के स्वास्थ्य एवं पोषण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते चिकित्सा अधिकारियों और कर्मियों पर खुद बीमार होने का खतरा मंडरा रहा है।
रेफरल अस्पताल कुटुंबा के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी नागेंद्र कुमार सिन्हा जिस सरकारी भवन में रहते हैं, वह अत्यंत जर्जर और दयनीय स्थिति में है। इतना ही नहीं, दिन के उजाले में भी भवन को देखना मन में भयावहता का आभास करा देता है। भवन में वर्षों से ना रंग-रोगन किया गया है और ना ही उखड़े प्लास्टर को ठीक किया गया है। भवन की खिड़कियों को दीमकों के झुंड ने चाटकर खोखला कर दिया है। अत्यंत सीधे और सरल स्वभाव के चिकित्सा पदाधिकारी फिर भी उसी भवन में रहते हैं।
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी का जर्जर निवास व दीमक चाटी गयी खिड़की।
अस्पताल में मरम्मत एवं सफाई के लिए सरकार एकमुश्त रुपये देती रही है, परंतु उक्त कार्य के लिए भेजे गए रुपये कहां और किस मद में खर्च किए जाते हैं इसका कभी पता नहीं चलता है। अस्पताल का शौचालय, लेबोरेटरी तथा अन्य संसाधन जीर्णशीर्ण है। यक्ष्मा जांच के लिए बनाई गई प्रयोगशाला में बलगम को निस्तारित करने के लिए न तो नल है और न ही बेसिन।
यक्ष्मा रोग उन्मूलन की बात सरकार और सिस्टम दोनों ही वर्षों से करते रहे हैं, परंतु रेफरल अस्पताल कुटुंबा में व्याप्त कुव्यवस्था रोग को और बढ़ावा देने की ओर स्पष्ट संकेत करती है। भवन का फर्श भी टूटा है।
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. नागेंद्र कुमार सिन्हा से जब भवन के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि रंग-रोगन का कार्य नहीं कराया गया है। क्या हालात है, यह आप खुद देख रहे हैं। इतना होने पर भी उनके होठों पर न तो किसी की शिकायत है और न ही ऐसे जर्जर भवन में रहने का कोई मलाल दिखता है। परंतु इसका दुखद पहलू यह है कि अस्पताल के प्रभारी ही जब गंदगी और कुव्यवस्था का शिकार हैं, तो वहां आम नागरिक की बात क्या होती होगी यह सहज समझा जा सकता है।