बेगूसराय, श्रीकृष्ण मिश्र: बेगूसराय के मटिहानी प्रखंड के मटिहानी गांव में होली के दौरान सात कुओं पर दो दिनों तक रंग-गुलाल की बरसात होती है।
कुंओं में ही रंग घोल दिया जाता है और उसे निकाल कर अलग-अलग टोलियां एक-दूसरे पर रंग बरसाती हैं। इस दौरान हुड़दंग नहीं होता है। रंग डालने व होली गीत की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।
गांव के निवासी पूर्व सरपंच 85 साल के चौधरी राजेश बचपन से यह होली देखते आ रहे हैं। वे बताते हैं कि यहां होली की सामूहिक परंपरा की शुरूआत एक मारवाड़ी परिवार ने 80 साल पहले की थी।
वह परिवार राजस्थान से बड़ी-बड़ी मारवाड़ पिचकारी लेकर आया था, जिनसे उन्होंने कुओं पर सामूहिक होली की शुरूआत कराई थी।
उप मुखिया संजय चौधरी बताते हैं कि गांव में होली मनाने के लिए सात कुएं चिह्नित हैं। होली के दिन पूरे गांव के लोग पांच कुओं पर जमा होकर एक-दूसरे पर रंगों की बौछार करते हैं, जबकि होली के अगले दिन शेष दो कुओं पर पर्व मनाकर इसका समापन किया जाता है।
पंचायत समिति सदस्य रामाश्रय साह कहते हैं कि प्रत्येक कुआं पर होली के दौरान रंगों के बौछार की रंग बरसाओ प्रतियोगिता होती है।
गांव के युवा दो टीमों में बंटकर एक-दूसरे पर रंग डालते हैं। इस क्रम में किसी टीम के पीछे हट जाने पर उस कुएं पर होली को समाप्त कर लोग आगे बढ़ जाते हैं।
ग्रामीण अनय कुमार कहते हैं कि रंग बरसाओ प्रतियोगिता को लेकर कुओं के दो तरफ रंग रखने के लिए नाद, ड्रम व बाल्टी आदि रखे जाते हैं।
लोग घरों से पुरानी पिचकारियां ढ़ूंढ़कर निकालते और दुरूस्त करते हैं। बांस की पिचकारी भी तैयार करते हैं। कुछ लोग साइकिल में हवा भरने वाले पंप को ही पिचकारी बना लेते हैं।
गांव में आधा दर्जन से अधिक मंडलियां एक सप्ताह पहले से ही घूम-घूम कर होली गीत व जोगीरा गाती हैं। होली के समापन के साथ यह समाप्त हो जाता है।
होली के बाद रंग बरसाओ टीम व ग्रामीण कलाकारों को सम्मानित किया जाता है। इसके लिए गांव के लोगों की ही एक कमेटी चुनाव करती है।
मटिहानी की इस होली को देखने आसपास के लोग आते हैं। बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय बेगूसराय के आरक्षी अधीक्षक रहते समय यहां की होली में शिरकत कर चुके हैं।