राजकुमार शुक्ल ने ही गांधी को दी थी महात्मा की उपाधि
संंसू, गढ़पुरा (बेगूसराय) : अंग्रेजों के गुलामी से आजाद करवाने में चंपारण सत्याग्रह के प्रणेता पंडित राजकुमार शुक्ल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। 1917 में चंपारण सत्याग्रह में कई सालों के प्रयास के बाद मोहनदास करमचंद गांधी को चंपारण लाकर ब्रिटिश द्वारा की गई नील की खेती से मुक्ति दिलाने तथा उन पर हो रहे अत्याचार से अवगत कराया। किसानों की माली हालत देखते हुए गांधी जी के मन में विचार आया कि जिस देश में आधे से ज्यादा आबादी के पास पहनने का वस्त्र नहीं है, वहां सूट बूट पहनना नाइंसाफी होगी। यही पर अपना सूट बूट उतार कर एक धोती में आ गए और सत्य और अहिंसा का नारा बुलंद किया। वैसे पंडित राजकुमार शुक्ला को उचित सम्मान दिलाने के लिए गढ़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति, बेगूसराय 2017 में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर राष्ट्रव्यापी रथ यात्रा के माध्यम से उनकी कृति जन-जन तक पहुंचाया। उन्होंने ही गांधी को महात्मा की उपाधि दी थी। इसके बाद से लोग महात्मा गांधी के नाम से जानने लगे। यह बातें राजकुमार शुक्ल की जयंती पर मारवाड़ी धर्मशाला प्रांगण में बुधवार को आयोजित कार्यक्रम के दौरान गढ़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति के सुशील कुमार सिंघानिया ने कहीं। समिति के सचिव मुकेश कुमार विक्रम ने कहा कि गढ़पुरा नमक सत्याग्रह यात्रा समिति प्रतिवर्ष राजकुमार शुक्ल की जयंती एवं पुण्यतिथि गढ़पुरा की क्रांतिकारी धरती पर मनाई जाती है। आजादी की लड़ाई के बिहार के प्रणेता राजकुमार शुक्ल जैसे क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी की भी जयंती पूरे प्रदेश में मनाई जानी चाहिए। आजादी के महानायक राजकुमार शुक्ल की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करने वालों में रज्जू गिरी, दीपक कुमार, विनोद कुमार, अरुण कुमार साह, धर्म नारायण झा, सक्षम सिंघानिया आदि मौजूद थे।