दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना के स्वर्ण जयंती के अवसर पर आज जुबली हाल में शुक्रवार को उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने की। कार्यशाला को संबोधित करते हुए शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार की नीतियों को लागू करने में मिथिला विश्वविद्यालय अग्रणी भूमिका निभा रहा है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा कि कार्यशाला में शिक्षकों के अच्छे फीडबैक आए हैं। कोई भी व्यवस्था न तो रातो- रात खराब होती है और न ही सुधरती है, बल्कि व्यवस्था सुधार हेतु हमें लगातार प्रयास करना होगा। उन्होंने शोध कार्य को बढ़ावा देने हेतु योग्य शिक्षकों की टीम बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि शोध के लिए फैलोशिप के लिए राज्य सरकार स्तर पर विचार किया जाएगा। उन्होंने शिक्षकेतर कर्मियों की भी कार्यशाला आयोजित करने, परीक्षा भवन बनाने समेत मुख्य रूप से शिक्षकों के बायोमेट्रिक उपस्थिति 15 अगस्त से एवं छात्रों की जनवरी से लागू करने की बात कही। कहा कि हर हाल में शिक्षकों, कर्मचारियों एवं छात्र-छात्राओं की बायोमैट्रिक हाजरी बननी चाहिए। वहीं राज्यपाल सचिवालय के संयुक्त सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता ने उच्च शिक्षा को गति प्रदान करने के लिए अनेक सुझाव देते हुए शिक्षा मंत्री के सुझाव पर अमल करने पर बल दिया। उन्होंने विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षकों से आए सुझाव पर सहमति देते हुए अपनी ओर से उन कमियों को पूरा करने का आश्वासन दिया। संयुक्त सचिव ने मिथिला विश्वविद्यालय के सत्र नियमित होने की प्रशंसा की।
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नैक मूल्यांकन में अच्छे ग्रेड पाने के लिए करने होंगे गंभीर प्रयास
अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि नैक का मूल्यांकन पांच वर्षों के लिए होता है, जो शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता की जांच- परख करता है। कुलपति ने नैक में अच्छे ग्रेड पाने के तरीकों की चर्चा करते हुए सभी प्रधानाचार्यों एवं आईक्यूएसी कोऑर्डिनेटरों से नैक मूल्यांकन की अनिवार्यता को विस्तार से बताया। कुलपति ने नैक मूल्यांकन के लिए शीघ्रताशीघ्र गंभीर प्रयास करने का आह्वान किया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 पर हुई चर्चा
प्रतिकुलपति प्रो. डोली सिन्हा ने पीपीटी के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि यह छात्र केंद्रित है, जिसका आउटकम बेहतर होगा। छात्र एक साथ विज्ञान और कला की डिग्रियां ले सकेंगे। किसी भी प्रोग्राम के बीच में किन्हीं कारणों से छात्र यदि छोड़कर जाते हैं तो फिर वापस आकर उस कोर्स को वे पूरा कर सकते हैं। प्रतिकुलपति ने शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाने पर जोर दिया, ताकि छात्र केवल रोजगार युक्त ही न हों, बल्कि रोजगार दूसरों को भी प्रदान कर सकें। वहीं कुलसचिव प्रो. मुश्ताक अहमद ने कहा कि मिथिला विश्वविद्यालय बिहार का पहला विश्वविद्यालय है, जहां के सभी कालेजों के सभी विभागों में शिक्षक उपलब्ध हैं। यदि कहीं भी किसी विभाग में शिक्षक न हो तो प्रधानाचार्य विश्वविद्यालय को सूचित करेंगे।
छह वर्ष के शैक्षणिक काल पूरा करने वाले संस्थान नैक में जा सकते
बिहार सरकार के शैक्षणिक सलाहकार प्रो. एनके अग्रवाल ने पीपीटी के माध्यम से नैक की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इसकी स्थापना 1994 में हुई थी, इसका मुख्यालय बेंगलुरु में है। नैक में वही संस्थान जा सकते हैं जो कम से कम 6 वर्षों के शैक्षणिक काल पूरा किए हों। उससे कम वाले पैक में जा सकते हैं। नैक मूल्यांकन के कई मापदंड हैं। उन्होंने कहा कि एनआईआरएफ में बिहार से सिर्फ मिथिला विश्वविद्यालय तथा सीएम कालेज ने ही भाग लिया है। वहीं गौरव सिक्का ने पैक का विस्तार से जानकारी देते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया। डा. दिवाकर झा के संचालन में आयोजित कार्यशाला में धन्यवाद ज्ञापन आईक्यूएसी के निदेशक डा जिया हैदर ने किया।