बगहा। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था का आधार संसाधन को माना जाता। सरकार नौनिहालों को शिक्षित करने के लिए हर साल अरबों खर्च कर रही, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ इस तरह की है कि संचार क्रांति के इस युग में बोरा-चट्टी का साथ नहीं छूट सका है।
बानगी के तौर पर बगहा दो प्रखंड को लिया जा सकता है। प्रखंड की 25 पंचायतों में 234 प्राथमिक और मध्य विद्यालय संचालित होते। इनमें 100 से अधिक विद्यालयों में बच्चों को बोरे पर बैठ कर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती है। हालात कुछ इस तरह के हैं कि प्रखंड के 15 विद्यालयों के पास अपनी जमीन तक नहीं है। ये विद्यालय निकटतम विद्यालय में समायोजित हैं। विभाग के निर्देशानुसार एक वर्ग कक्ष आवंटित किया गया जिसमें पूरा विद्यालय संचालित होता। अब ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता। विवश शिक्षक भी संसाधन की कमी का रोना रोते तथा किसी तरह पढ़ाई हो रही। एक ही वर्ग कक्ष में तीन-तीन शिक्षक ड्यूटी बजाते हैं। बच्चों की संख्या बढ़ने पर निकट के बगीचे से लेकर अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कक्षाएं संचालित होती हैं। इन विद्यालयों के लिए भूमि की खोज करीब डेढ़ दशक पूर्व शुरू हुई। शिक्षा विभाग ने अंचल प्रशासन को पत्राचार कर भूमि आवंटित करने की मांग की, लेकिन विभाग आज तक कच्छप गति से भूमि की खोज कर रहा। जब रास्ता नहीं दिखा तो विभाग ने भूमिहीन विद्यालयों को समायोजित कर दिया। सहज अंदाजा लगाया जा सकता कि इन विद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई कितनी बड़ी चुनौती बनी हुई है। दर्जा मिला, शिक्षक नहीं
उच्च व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में भी चुनौतियां कम नहीं हैं। प्रखंड के अधिकांश विद्यालयों में विषयवार शिक्षक नहीं हैं। पिपरासी, मधुबनी, ठकराहां और भितहां में तो निजी कोचिग संस्थानों के भरोसे कोर्स पूरा होता। दूसरी ओर, शिक्षकों की पदस्थापना का इंतजार आज भी बच्चों को है। बयान :- भूमि के अभाव में इन विद्यालयों को समायोजित किया गया है। भूमि उपलब्ध होने के बाद ही भवन निर्माण संभव है। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है।
विजय कुमार यादव, बीईओ, बगहा दो