जागरण संवाददाता, सुपौल : दलहन फसल की अगर बात करें तो जिले की मुख्य दलहन फसल मूंग है। हाल के दिनों में कमी दर्ज की गई है। बीते दो वर्षों में इस फसल में पांच से छह हजार हेक्टेयर की कमी आई है। इसके पीछे लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन को मुख्य वजह बताया जा रहा है। जलवायु में हो रहे लगातार परिवर्तन के कारण मूंग की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है जिससे किसानों का मोह धीरे-धीरे इस फसल से टूटता जा रहा है। अब इस साल 20 हजार हेक्टेयर की जगह 15 हजार हेक्टेयर में मूंग की खेती की गई है। जिला कृषि पदाधिकारी समीर कुमार भी मानते हैं कि मूंग की खेती में दो सालों से गिरावट दर्ज की जा रही है। इधर मौसम विभाग ने आंधी-बारिश का पूर्वानुमान जारी किया है जिससे किसानों की चिता इस फसल को लेकर बढ़ गई है। अधिक पानी लगने पर इस फसल के सूखने का खतरा रहता है।
जानकारी अनुसार इस इलाके में किसान रबी फसल की कटाई के उपरांत मूंग की फसल लगाते हैं। एक तो धान काटकर रबी फसल की बोआई होती है जिससे रबी फसल भी पछता हो जाती है और इस फसल को काटकर किसान मूंग की बोआई करते हैं जिससे यह भी पछता की श्रेणी में चली जाती है। बोआई में देरी होने से जब मूंग की फसल पकने लगती है तब तक बारिश आ जाती है और किसान इसे तोड़ नहीं पाते हैं। एकाध बार तोड़कर किसान संतोष कर लेते हैं। अगर दो से तीन बार तोड़ाई हो जाए तो इससे ही किसानों की दलहन की समस्या सालभर के लिए दूर तो हो ही जाती है साथ ही किसान इसे बेच भी लेते हैं जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है।
लेकिन किसान अरविद कुमार यादव ने बताया कि धान और गेहूं के अलावा तीसरी फसल के रूप में वे मूंग की खेती करते हैं। परंतु मौसम का साथ नहीं मिलने के कारण अब तो परिवार के दाल की समस्या के समाधान के लिए ही मूंग की खेती करते हैं। सरायगढ़ के किसान मु. जाकिर बताते हैं कि कोसी का इलाका होने के कारण यहां जल जमाव एक बड़ी समस्या है। खेतों में नमी अधिक रहने के कारण मूंग के पौधों का विकास नहीं हो पाता है। अगर इसपर बारिश हो जाए तो फसल पूर्ण रूप से बर्बाद होने की संभावना बनी रहती है।