शक्ति रुपेण संस्थिता: ढंगरी दुर्गा मंदिर किसी सिद्धि पीठ से कम नही



ढंगरी दुर्गा मंदिर भक्तों के लिए मनोकामना सिद्ध पीठ से कम नहीं है।अठारहवी मे स्थापित इस मंदिर मे पहले चैत्रीय एवं शारदीय दोनो नवरात्र मे दुर्गा पूजा का आयोजन होता था। जो बाद केवल शारदीय नवरात्र मे ही होने लगा। अंग्रेज शासन काल से हो रही दुर्गा पूजा अबतक अनवरत आयोजित हो रही है। सच्चे मन से मांगी लोगों की हर मनोकामना पूरा होने से मंदिर सिद्धि पीठ के रूप में प्रचलित है।
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इतिहास
इस मंदिर की स्थापना 1870 में बंगाल के फरकिया स्टेट द्वारा विघटन के बाद वहां के तत्कालीन पुजारी जो ढंगरी के मुरारी ठाकुर के पूर्वज के द्वारा की गई थी।उसे स्टेट से मुर्ति,पत्थर के थाल व खड्ग जो उपहार स्वरूप मिला था लाकर यहां मंदिर की स्थापना की। उस समय उन्हें वहां से प्राप्त अष्टधातु से निर्मित देवी की प्रतिमा,काले ग्रेनाइड पत्थर एवं तांबे के बर्तन तथा एक खड़ग जो आज भी अवशेष के रूप में मौजूद है। मुरारी ठाकुर के पूर्वजों ने इस मंदिर को अपने ननिहाल के संबंधी बिरनी झा के संरक्षण एवं सहयोग से स्थापित किया। जो कच्चे घर में स्थापित हुआ था। बाद में समस्त ग्रामीण सहित अन्य के काफी सहयोग से आज भव्य मंदिर स्थापित है।

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विशेषता
इस मंदिर का पूजा पद्धति भी अलग है।जो बंगाल से ही प्राप्त हुआ।उसी विधान से पूजा होती है।शारदीय नवरात्र मे इस मंदिर मे कलशस्थापन से दशमी तक इसी पद्धति से पूजा होती है। षष्ठी तिथी को जुड़वा बेल का सायंकालीन पूजन कर बिल्वाभिमंत्रण किया जाता है। फिर सप्तमी तिथि को सुबह पूजन कर जुड़वा बेल तोड़कर उसे देवी का स्वरूप मानकर पालकी पर मंदिर प्रवेश कराया जाता है। फिर पूजन के बाद उजले रंग की छागर की बलि दी जाती है। महानिशा पूजा में पूरे ग्रामीण के साथ साथ हजारों लोग पूरी रात मंदिर परिसर में जमा होकर निशा पूजा में भाग लेते है।
इसी पूजा के क्रम में लोग अपनी मनोकामना देवी मां से मांगते है।जिसे पूरा होने पर चढ़ावा करते है। नौ दिन तक मंदिर में दुर्गा सप्तशती पाठ एवं कीर्तन भजन होता है। महानवमी तिथी को देवी त्रिसुलिनी पूजा कर छागरो की बलि दी जाती है।करीब चार पांच सौ छागर हर साल चढ़ाया जाता है।
दशमी को लोग मंदिर मे जयंती चढ़ाते है,और कलश विसर्जन होने पर उसका जल अपने शरीर पर छिड़कते है।अपराजिता लता की पूजा की जाती है।जिसे बांह मे धारण किया जाता है। इस मंदिर में सालों भर देवी माता की पूजा करने वाले पुजारी त्रिपितनाथ ठाकुर कहते हैं कि इस महापूजा को संपन्न करने में उन्हें देवी की असीम कृपा मिलती है तब ही वो कर पाते हैं। पूर्वजों के धरोहर की सेवा करते ताउम्र माता की पूजा करने की इच्छा है जब तक माता की कृपा रहेगी सदैव पूजन करते रहेंगे। उन्होंने बताया कि इस मंदिर की आस्था का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि सालो भर मुसीबत में फंसे लोगों को यहां आकर मदद मिलती है जिसके वो साक्षी है।आये दिन लोग मंदिर आकर उसके पूजा के फूल को प्रसाद स्वरूप मांगकर समस्या का निदान पाते है।
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क्या कहते हैं पुजारी वर्ष 1969 से इस मंदिर में अनवरत पुरोहित का कार्य कर रहा हूं।दिनों दिन मंदिर के लोगो की बढ़ती आस्था से आज ये मंदिर एक सिद्धि पीठ के रुप मे स्थापित हो गई है।निश्छल भाव एवं सच्चे मन लोग जो भी मनोकामना लेकर आते हैं।देवी मां उसे जरूरी पूरा करती है।ऐसा मुझे विश्वास है। आज समाज में इसके अनेकों उदाहरण है।52वर्ष से मै इस मंदिर की सेवा में हूं कभी किसी को निराश नही देखा।मंदिर पूजा समिति एवं ग्रामीणों का भरपूर सहयोग से यह मंदिर दिनो दिन भव्य स्वरूप एवं आस्था का केंद्र बन गया है।
पंडित वंशीधर ठाकुर पुरोहित।
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क्या कहते हैं पूजा समिति के अध्यक्ष
पूर्वजों के धरोहर इस मंदिर की पूजा व्यवस्था मंदिर की सम्पत्ति से होता है। पक्के भवन निर्माण में सबों का सहयोग मिला है।ग्रामीणों के आस्था एवं सहयोग से ही दिनों दिन मन्दिर में दुर्गा पूजा बेहतर ढंग से सम्पन्न हो रहा है।सबके सहयोग से एक महादेव मंदिर की स्थापना भी की जा रही है।
मधुसुदन झा, अध्यक्ष पूजा समिति।

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