मुंबई. एक ऐसा दौर था, जब तकरीबन हर फिल्म में कादर खान (Kader Khan) मौजूद होते थे. एक तरह से उनके बिना फिल्में नहीं बनती थीं. 90के दशक में वो तमाम बड़ी फिल्मों में थे. अपनी अभिनय शैली से उन्होंने दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई. 22 अक्टूबर 1935 को जन्मे कादर खान (Kadar Khan) मूल रूप से पठान थे. उनका जन्म अफगानिस्तान के काबूल में हुआ था. बाद में उनका परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया. मुंबई में ही उनकी परवरिश हुई.
कादर खान पढ़ाई में बहुत होशियार थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि वे अपने समय के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे कलाकार थे. कॉलेज के जमाने से ही वो नाटकों में हिस्सा लिया करते थे. फिल्मों में एंट्री करने से पहले, उन्होंने मुंबई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में बतौर प्रोफेसर छात्रों को पढ़ाया भी.
बताया जाता है कि जब कॉलेज में वो पढ़ रहे थे, तो कॉलेज के एनुअल फेस्टिवल में कादर खान ने प्ले में हिस्सा लिया था. सबने उनकी एक्टिंग की तारीफ की. जब यह बात दिलीप कुमार को पता चली तो उन्होंने उनके नाटक को देखने की इच्छा जताई. दिलीप साहब के लिए विशेष रुप से प्ले का मंचन किया गया. कादर खान की एक्टिंग देख अभिनय सम्राट ने उन्हें अपनी दो फिल्मों के लिए साइन कर लिया. वो दोनों फिल्में थीं- 'सगीना महतो' और 'बैराग'. इस तरह उनके फिल्मी करियर का शानदार आगाज हुआ. हांलाकि उनकी पहली रिलीज फिल्म ‘दाग’ थी, फिर इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
कादर खान एक शानदार अभिनेता होने के साथ-साथ एक उम्दा डायलॉग्स राइटर भी थे. अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की अधिकतर फिल्मों के संवाद उन्होंने ही लिखा. एक पुराने इंटरव्यू में उन्होंने सिनेमा के लेखन पर खुलकर बात की थी. उन्होंने कहा था,”समय के साथ फिल्मों के स्टोरी में काफी बदलाव आ गया है. भाषा पर कोई ध्यान नहीं देता'. साथ ही एक और इंटरव्यू में कादर खान, अमिताभ से नाराज भी दिखे थे.
90 के दशक में उनकी जोड़ी गोविंदा के साथ बनी. 'साजन चले ससुराल', 'राजा बाबू', 'बनारसी बाबू', 'हीरो नंबर वन', 'खुद्दार', 'दुल्हे-राजा', 'आंटी नंबर वन' आदि फिल्मों में गोविंदा के साथ उन्होंने दर्शकों को जमकर हंसाया.