एक हालिया शोध से पता चला है कि फेफड़ों की कोशिकाओं व ऊतकों में ज्यादा मात्रा में आयरन होने से अस्थमा की समस्या खतरनाक हो सकती है
व फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी आ सकती है. पहली बार किए गए ऐसे शोध में फेफड़ों की कोशिकाओं व ऊतकों में उपस्थित आयरन व उसके प्रभावों पर अध्य्यन किया गया है. शोध में अस्थमा के मरीजों के नमूने भी लिए गए व चूहों पर भी शोध किया गया है. इस शोध को यूरोपियन रेस्पिरेट्री जर्नल में प्रकाशित किया गया है.
प्रतिरोधी क्षमता हो जाती है सक्रिय- चूहों पर किए गए शोध में दर्शाया गया है कि फेफड़ों में उपस्थित अलावा आयरन प्रतिरोधी क्षमता को सक्रिय कर देता है व इससे अस्थमा के लक्षण व भी बेकार हो जाते हैं, जिससे बीमारी के व खतरनाक होने की आसार बढ़ जाती है. फेफड़ों में आयरन के ज्यादा होने से म्यूकस ज्यादा बनने लगता है, जिससे फेफड़ों में छिलने के निशान पड़ जाते हैं.इससे हवा खींचने वाली नदी संकरी हो जाती है व सांस लेने में परेशानी होने लगती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू कैसल व आफ्टर मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं जे होरवाट ने कहा, हमारे विभिन्न अंगों तक ऑक्सीजन का प्रवाह बनाए रखने के लिए व एंजाइम की गतिविधियां करने के लिए आयरन की आवश्यकता होती है. हमारी प्रतिरोधी क्षमता कोशिकाओं में आयरन धातु को कुछ इस प्रकार छिपा देती है ताकि किसी प्रकार का संक्रमण उस तक नहीं पहुंच पाए. इसकी वजह से आसपास उपस्थित अंगों की कोशिकाओं व ऊतकों में आयरन की मात्रा बढ़ती जाती है.
होरवाट ने कहा, हमारे शोध से यह इशारा मिलता है कि असमान आयरन के अवशोषण व असामान्य स्तर पर आयरन के जमा होने से फेफड़ों से संबंधित बीमारी हो सकती है. हमें पता है कि आयरन के उच्च व कम स्तर से अस्थमा का खतरा बढ़ सकता है, लेकिन इससे पहले हमें यह पता नहीं था कि फेफड़ों में आयरन के जमा होने से अस्थमा का क्या संबंध है. इसलिए हमने यह शोध करने की सोची ताकि हम आयरन की मात्रा व अस्थमा के बीच के संबंधों को बेहतर ढंग से समझ सके.
ऐसे किया गया अध्य्यन- शोधकर्ताओं ने कई तरह के परीक्षण किए ताकि हवा की नली में आयरन की मात्रा को मापा जा सके. उन्होंने देखा कि अस्थमा के मरीजों के फेफड़ों की कोशिकाओं के बाहर आयरन की मात्रा स्वस्थ लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा कम थी.वहीं, गंभीर अस्थमा से पीड़ित मरीजों में आयरन की मात्रा कम स्तर के अस्थमा पीड़ित मरीजों की संख्या में व भी ज्यादा थी.
इस शोध के परिणामों से यह पता चलता है कि कोशिकाओं के बाहर आयरन की मात्रा कम होने से व कोशिकाओं के अंदर आयरन की मात्रा ज्यादा होने से फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी आती है व इससे अस्थमा व भी खतरनाक होने कि सम्भावना है.
शोधकर्ताओं ने चूहों पर अध्ययन किया. उन्होंने चूहों की फेफड़ों की कोशिकाओं में आयरन की मात्रा को बढ़ाया व देखा कि इससे एक प्रतिरोधी रिएक्शन सक्रिय हो गई, जिससे फेफड़ों को व नुकसान पहुंचा व हवा की नली बाधित होने लगी. इससे सांस लेने में चूहों को व तकलीफ होने लगी.
शोधकर्ता होरवाट ने कहा, इंसानो में म्यूकस बनने से व फेफड़ों में छिलने के निशान पड़ने से हवा की नाली संकरी हो जाती है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है. इस पर अभी व शोध करने की आवश्यकता है ताकि ऐसी थेरेपी विकसित की जा सके जिससे फेफड़ों में उपस्थित आयरन की मात्रा को कम किया जा सके.