सूर्य ग्रहणः युक्तिवादियों की अपील, अंधविश्वास से रहें दूर

कोलकाता: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का क्या अब खत्म हो जाएगा ? क्या इसकी क्षमता कम हो जाएगी या फिर ये और मारक हो जाएगा? ये हर कोई जानना चाहता है। हमें कोरोना महामारी के बीच खुद की सुरक्षा करके चलना होगा। किन्तु ज्योतिषीयों का दावा है कि कोरोना वायरस 21 जून को लगने वाले सूर्य ग्रहण के बाद तेजी से बढ़ेगा। गोरखपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित राजेश तिवारी बताते हैं कि कोरोना का अभी खत्म नहीं होने वाला है। 21 जून को सूर्यग्रहण है। इसके बाद ये रोग और तेजी से बढ़ेगा। 13 अगस्त के बीच के समय भारत में ये रोग बढ़ेगा। 13 अगस्त के बाद रुकेगा और 13 सितंबर से 13 अक्टूबर के बीच डाउनफाल की ओर जाएगा।

इतना ही नहीं बल्कि ज्योतिषीयों ने कहा कि कोविड-19 से आप कितने सुरक्षित हैं ? ये सवाल हर किसी के मन में हर रोज कौंधता होगा लेकिन अब आप इसकी जानकारी एक ज्योतिषीय सॉफ्टवेयर के माध्यम से आसानी से लगा सकते हैं। ये दुनिया का पहला ऐसा ज्योतिषीय सॉफ्टवेयर है, जो आपको बताएगा कि आप कोरोना से कितने प्रतिशत सुरक्षित हैं। ज्योतिषाचार्य का दावा है कि कोरोना के शरीर में प्रवेश करने की इंद्रियों के चारों मार्गों नाक, मुंह, कान और आंख से प्रवेश की संभावनाएं कितनी कम और अधिक है उसका प्रतिशत ये सॉफ्टवेयर बता देगा। आप कितने सेंसटिव हैं ये भी बता देगा।
क्या कहते हैं युक्तिवादी भारतीय विज्ञान व युक्तिवादी समिति के संयुक्त सचिव संतोष शर्मा ने 21 जून को लगने वाले सूर्यग्रहण के संबंध में कहा कि सूर्यग्रहण को एक खगोलीय प्राकृतिक घटना के रूप में ही लिया जाना चाहिए। इस बार सूर्यग्रहण के समय कोरोना वायरस का संक्रमण भी विश्व के अनेक देशों में फैला हुआ है। पर सूर्य ग्रहण का कोरोना से कोई सम्बन्ध नहीं है। ग्रहण होने से न ही कोरोना तुरंत कम हो जाएगा और न ही बढ़ जाएगा , ऐसी किसी भी भविष्यवाणी पर विश्वास नही करें। ग्रहण एक खगोलीय घटना है और कोरोना वर्तमान में अनेक देशों में व्याप्त एक वायरस संक्रमण।
उन्होंने कहा कि सूर्यग्रहण के बाद कोरोना पर प्रभाव पड़ने वाली भविष्यवाणियां गलत है। सूर्यग्रहण से किसी भी राशि के व्यक्ति/गर्भवती महिला/जल एवं खाद्यान्न पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए इससे जुड़े विभिन्न अंधविश्वासों व भ्रमों के फेर में न पड़े। कोई भी ज्योतिषी किसी के बारे में कुछ भी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। इसके साथ ही ज्योतिषीयों द्वारा बनाए गए सॉफ्टवेयर भी आम लोगों को ठगने का सिर्फ एक उपाय मात्र है। ठगों से दूरी बनाएं रखें।
शर्मा ने बताया कि आज प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को भी यह पता है कि सूर्य तथा पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाने के कारण सूर्यग्रहण होता है। सरल शब्दों में इस खगोलीय घटना को इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूर्य प्रकाशवान पिण्ड है तथा पृथ्वी एवं चंद्रमा प्रकाशहीन। अपनी-अपनी कक्षाओं में परिक्रमा करते हुए चंद्रमा या पृथ्वी में से कोई एक जब सूर्य के सामने आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश अंशत: या पूर्णत: दूसरे तक नहीं पहुँच पाता तो ग्रहण लगता है।
21 जून 2020 को साल का पहला सूर्यग्रहण पड़ेगा। यह कुछ स्थानों में वलयाकार तथा कुछ स्थानों पर आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में दिखाई देगा । जब चंद्रमा पृथ्वी से काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात् चन्द्रमा सूर्य को इस प्रकार से ढँकता है कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्यग्रहण कहते हैं।
उन्होंने कहा कि सूर्यग्रहण को देखने के तरीकों के संबंध में भी काफी भ्रम है। वास्तव में सूर्य को सामान्य दिनों में नंगी आँखों से देखना भी आँखों के लिए हानिकारक है लेकिन सामान्य दिनों में सूर्य की प्रखरता के कारण उसे लोग एकटक देखने का प्रयास नहीं करते। जबकि सूर्यग्रहण के अवसर पर उत्सुकता व जिज्ञासा के कारण लोग ग्रहण की अवस्थाओं को लगातार देखते हैं। सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरणों के साथ ही अल्ट्रावायलेट व इन्फ्रारेड किरणें भी होती हैं जो आँख के परदे (रेटिना) की कोशिकाओं पर पड़ती हैं तथा लगातार देखे जाने पर प्रकाश ऊर्जा, ऊष्मा ऊर्जा के रूप में अवशोषित हो जाती है तथा आँख के परदे के उस विशिष्ट हिस्से को जलाती है, जिससे रेटिना में स्थायी क्षति हो सकती है।
इससे प्रभावित भाग की कार्यक्षमता कम हो जाती है तथा व्यक्ति को धुंधला दिखाई देता है। सामान्य दिनों की भाँति आंशिक ग्रहण में भी सूर्य की किरणें उतना ही नुकसान पहुँचाती है जबकि पूर्ण सूर्यग्रहण में सूर्य पूरी तरह ठंडा होने के कारण ग्रहण देखना अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित है। आंशिक सूर्यग्रहण में सूर्य पूरी तरह ढँका नहीं होता। सूर्यग्रहण को रंगीन फिल्म, पानी में, दूरबीन से, धूप के चश्मे से न देखें। ग्रहण को पिन होल कैमरा बनाकर, सोलर फिल्टर युक्त चश्में से देखा जा सकता है।
संतोष ने कहा कि सूर्यग्रहण के संबंध में सदियों से कई प्रकार के अंधविश्वास व मान्यताएँ चली आ रही है जैसे सूर्यग्रहण सूर्य को राहू नामक दुष्ट ग्रह के निगल जाने से होता है जिसकी शांति के लिये अनुष्ठान आदि किये जाने की सलाह दी थी, साथ ही राहू ग्रह के दुष्प्रभाव से पानी, भोजन, कपड़े अपवित्र होना मानकर उसे पुन: शुद्ध करने के लिए कहा जाता था। जबकि भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पहले 499 ईस्वी में यह सिद्ध कर दिया था कि सूर्यग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है जो कि सूर्य पर चन्द्रमा की छाया पड़ने से होती है।
उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय के गोलाध्याय में इस बात का वर्णन किया है। लेकिन अब जब सबको ज्ञात ही है कि सूर्य व पृथ्वी के बीच चन्द्रमा के आने के कारण सूर्यग्रहण होता है तथा सीमित समय के लिए होता है, राहू केतु की मान्यताएँ बेबुनियाद प्रमाणित हो चुकी है तब उससे जुड़े अंधविश्वास व भ्रम को मानने की आवश्यकता नहीं है।
साथ ही सूर्य ग्रहण का कोरोना संक्रमण के बढ़ने या खत्म होने से कोई सम्बन्ध नहीं है, ग्रहण खगोलीय घटना है। और कोरोना वायरस संक्रमण से पृथ्वी के कुछ देशों में होने वाली महामारी है जो अन्य संक्रमणों की तरह स्वयम धीरे धीरे कम होने लगेगा। और वैक्सीन बनने, दवा बनने से पूर्णतया समाप्त हो जाएगा। अतएव किसी भी भ्रम में न पड़ना ही उचित होगा। हमें खुद की और अपनों की सुरक्षा करने के लिए सावधानी बरतनी होगी। ये भी तय करना होगा कि अपने साथ हम अपनों को भी इस महामारी से बचा पाएं।

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