5 जून 2019 का दिन रोहित शर्मा का था. उन्होंने शतक के साथ और भारत ने जीत के साथ विश्व कप की शुरूआत की थी. फिर सेमीफाइनल तक के सफ़र में यही सिलसिला जारी रहा. रोहित शतक बनाते रहे. भारत जीतता रहा. सिर्फ़ इंग्लैंड के ख़िलाफ़ मैच में ऐसा नहीं हुआ. रोहित ने तो शतक लगाया, लेकिन भारत मैच हार गया. आज क़रीब एक साल के बाद सोचिए तो समझ आता है कि टीम इंडिया 1983 या 2011 का इतिहास क्यों नहीं दोहरा पाई. हम ख़ुशी से ताली बजाते रहे कि भारत लगातार जीत रहा है. हर जीत के बाद हमने ख़िताब की तरफ़ अपना दावा और मज़बूत माना. हम भावुक क्रिकेट फैंस ने माना कि ख़िताब की तरफ़ एक और कदम बढ़ा दिया है, लेकिन हम ग़लत थे.
हम अपनी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ कर रहे थे. सच्चाई ये थी कि हम जीत नहीं रहे थे बल्कि विरोधी टीमें हमें जीतने दे रहीं थीं. असल में तो कोई मेहनत कर रहा था तो वो थे भारतीय गेंदबाज़ और कड़वा सच यही है कि बल्लेबाज़ों की नाकामी की वजह से भारतीय गेंदबाज़ों का प्रदर्शन बेकार चला गया. विश्व कप के इतिहास में ये पहला मौक़ा था जब भारतीय बल्लेबाज़ों के मुक़ाबले भारतीय गेंदबाजी यूनिट ज्यादा संतुलित थी. बावजूद इसके सेमीफाइनल में 18 रनों की हार के साथ टीम इंडिया टूर्नामेंट से बाहर हो गई.
पूरे टूर्नामेंट में बल्लेबाज नहीं गेंदबाज़ जीता रहे थे
जीत की पहली ज़रूरत होती है- प्रदर्शन में निरंतरता. ये निरंतरता 2019 विश्व कप में बल्लेबाज़ों के मुक़ाबले गेंदबाज़ों के प्रदर्शन में कहीं ज्यादा और कहीं बेहतर थी. चलिए भारत के पहले मैच से लेकर सेमीफाइनल तक के सफर को याद करते हैं. आज ही के दिन 2019 में भारतीय गेंदबाजों ने मज़बूत दक्षिण अफ़्रीका को सिर्फ 227 रनों पर समेट दिया. इन छोटे से लक्ष्य को हासिल करने में भी बल्लेबाजों को संघर्ष करना पड़ा. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 36 रनों की जीत में गेंदबाजों का योगदान अहम रहा.
पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय टीम ने स्कोरबोर्ड पर कम से कम 20 रन कम जोड़े थे, लेकिन भारतीय गेंदबाजों ने शानदार गेंदबाजी की. जिसकी बदौलत पाकिस्तानी बल्लेबाजों को मैच में टिकने ही नहीं दिया. अफगानिस्तान के खिलाफ मैच को याद कीजिए. भारतीय बल्लेबाज स्कोरबोर्ड पर सिर्फ 224 रन जोड़ पाए थे. अफगानिस्तान के बल्लेबाजों ने शानदार संघर्ष किया. आखिरी ओवर में अगर मोहम्मद शमी ने हैट्रिक ना ली होती तो बाजी पलट सकती थी. विश्व कप में वेस्टइंडीज की टीम को भारतीय गेंदबाजों ने 143 रनों पर समेट दिया.
इंग्लैंड के खिलाफ मैच को भी याद कीजिए. भारतीय टीम वो मैच हार गई थी, लेकिन इसका ठीकरा आप गेंदबाजों के सिर नहीं फोड़ सकते हैं. उस मैच में इंग्लैंड की टीम एक वक्त पर 400 रनों के आस-पास पहुंचती दिख रही थी. 30 ओवर के आस-पास इंग्लैंड ने 200 रनों का स्कोर पार कर लिया था और उसका सिर्फ एक विकेट गिरा था. लेकिन मिडिल ओवरों में भारतीय गेंदबाजों ने समझदारी से गेंदबाजी कर इंग्लैंड को 337 रनों पर रोक दिया.
इंग्लैंड की टीम 26वें ओवर से 35 ओवर के बीच सिर्फ 35-40 रन ही बना पाई थी. अगले मैच में बांग्लादेश ने भी भारतीय फैंस की सांसे रोक दी थीं. गेंदबाजों ने एक बार फिर अपनी लाइन-लेंथ को काबू में रखा और टीम इंडिया को जीत दिलाई. कभी शमी तो कभी बुमराह जीत के हीरो रहे. लेकिन बल्लेबाज़ी में मामला ढीला ही रहा. मिडिल ऑर्डर तो पूरे टूर्नामेंट में लड़खड़ाता ही रहा.
गेंदबाज़ों ने तो सेमीफ़ाइनल में कीवियों को भी हिला दिया था
अब सेमीफाइनल की भी बात कर लेते हैं. सेमीफाइनल में भारतीय गेंदबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया. भारतीय तेज गेंदबाजों ने मैच की शुरुआत से ही न्यूज़ीलैंड के बल्लेबाजों को संभलने का मौका नहीं दिया. पहले दो ओवर मेडन गए. इसके बाद बुमराह ने मार्टिन गप्टिल को पवेलियन भी भेज दिया. न्यूज़ीलैंड के किसी भी टॉप ऑर्डर बल्लेबाज ने खुलकर बल्लेबाजी नहीं की. शुरुआत के पांचों बल्लेबाजों में से किसी का स्ट्राइक रेट 82 से ऊपर नहीं गया. यही वजह थी कीवियों के स्कोरबोर्ड पर 50 ओवर में 239 रन ही जुड़े.
ये अलग बात है कि न्यूज़ीलैंड के गेंदबाजों ने भारतीय बल्लेबाजों के लिए यही 240 रन नामुमकिन बना दिए. बल्लेबाज़ों की नाकामी बड़े 'लेवल' के मैच में दिखी. वो कमजोरी जो रोहित शर्मा के शतकों के पर्दों में छुपी थी. भारत हारा. टूर्नामेंट से बाहर हुआ. अब ये मौक़ा कब मिलेगा?